एकपन्चाशत्तम (51) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: एकपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
महाराज! एक दिन, जब महात्मा दधीच सरस्वती नदी में देवताओं का तर्पण कर रहे थे, वह माननीय अप्सरा उनके पास जाकर खड़ी हो गयी। उस दिव्य रूप धारिणी अप्सरा को देखकर उन विशुद्ध अन्तः करण वाले महर्षि का वीर्य सरस्वती के जल में गिर पड़ा। उस वीर्य को सरस्वती नदी ने स्वयं ग्रहण कर लिया। पुरुषप्रवर! उस महान नदी ने हर्ष में भरकर पुत्र के लिये उस वीर्य को अपनी कुक्षि में रख लिया और इस प्रकार वह गर्भवती हो गयी। प्रभो! समय आने पर सरिताओं में श्रेष्ट सरस्वती ने एक पुत्र को जन्म दिया और उसे लेकर वह ऋषि के पास गयी। राजेन्द्र! ऋषियों की सभा में बैठे हुए मुनि श्रेष्ठ दधीच को देखकर उन्हें उनका वह पुत्र सौंपती हुई सरस्वती नदी इस प्रकार बोली- ‘ब्रह्मर्षे! यह आपका पुत्र है। इसे आपके प्रति भक्ति होने के कारण मैंने अपने गर्भ में धारण किया था। ब्रह्मर्षे! पहले अलम्बुषा नामक अप्सरा को देखकर जो आपका वीर्य स्खलित हुआ था, उसे आपके प्रति भक्ति होने के कारण मैंने अपने गर्भ में धारण कर लिया था; क्योंकि मेरे मन में यह विचार हुआ था कि आपका यह तेज नष्ट न होने पावे। अतः आप मेरे दिये हुए अपने इस अनिन्दनीय पुत्र को ग्रहण कीजिये’। उसके ऐसा कहने पर मुनि ने उस पुत्र को ग्रहण कर लिया और वे बड़े प्रसन्न हुए। भरतभूषण! उन द्विज श्रेष्ठ ने बड़े प्रेम से अपने उस पुत्र का मस्तक सूंघा और दीर्घ काल तक छाती से लगाकर अत्यन्त प्रसन्न हुए महामुनि ने सरस्वती को वर दिया- ‘सुभगे! तुम्हारे जल से तर्पण करने पर विश्वेदेव, पितृगण तथा गन्धर्वों और अप्सराओं के समुदाय सभी तृप्ति लाभ करेंगे’।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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