महाभारत आदि पर्व अध्याय 149 श्लोक 1-17

एकोनपञ्चाशदधिकशततम (149) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृहपर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: एकोनपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
धृतराष्‍ट्र आदि के द्वारा पाण्‍डव के लिये शोक प्रकाश एवं जलाञ्जलिदान तथा पाण्‍डवों का वन में प्रवेश

वैशम्‍पायन जी कहतें हैं- जनमेजय! उधर रात व्‍यतीत होने पर वारणावत नगर के सारे नागरिक बड़ी उतावली-के साथ पाण्‍डुकुमारों की दशा देखने के लिये उस लाक्षा समूह के समीप आयें। आते ही वे (सब) लोग आग बुझाने में लग गये। उस समय उन्‍होंने देखा कि सारा घर लाख का बना था, जो जलकर खाक हो गया था। उसी में मन्‍त्री पुरोचन भी जल गया था। (यह देख) वे (सभी) नागरिक चिल्‍ला चिल्‍लाकर कहने लगे कि ‘अवश्‍य ही पापाचारी दुर्योधन ने पाण्‍डवों का विनाश करने के लिये इस भवन का निर्माण करवाया था। इसमें संदेह नहीं कि धृतराष्‍ट्र दुर्योधन ने धृतसमूह की जानकारी में पाण्‍डुपुत्रों को जलाया है और धृतराष्‍ट्र ने इसे मना नहीं किया। निश्‍चय ही इस विषय में शतनुनन्‍दन भीष्‍म भी धर्म का अनुसरणनहीं कर रहे हैं। द्रोण, विदुर, कृपाचार्य तथा अन्‍य कौरवों को भी यही दशा है। अब हम लोग दुरात्‍मा धृतराष्‍ट्र के पास यह संदेश भेज दें कि तुम्‍हारी सब से बड़ी कामना पूरी हो गयी। तुम पाण्‍डवों को जलाने में सफल हो गये’।

तदनन्‍तर उन्‍होंने पाण्‍डवों को ढूंढ़ने के लिये जब आग को इधर-उधर हटाया, तब पांच पुत्रों के साथ निरपराध भीलनी की जली लाश देखी। उसी सुरंग खोदने वाले पुरुष ने घर को साफ करते समय सुरंग के छेद को धूल से ढक दिया था। इससे दूसरे लोगों की दृष्टि उस पर नहीं पड़ी। तदनन्‍तर वारणावत के नागरिकों ने धृतराष्‍ट्र को यह सूचित कर दिया कि पाण्‍डव तथा मन्‍त्री पुरोचन आग में जल गये। महाराज धृतराष्‍ट्र पाण्‍डुपुत्रों के विनाश का यह अत्‍यन्‍त अप्रिय समाचार सुनकर बहुत दुखी हो विलाप करने लगे- ‘अहो! माता सहित इन शूरवीर पाण्‍डवों के दग्‍ध हो जाने पर विशेष रुप से ऐसा लगता हैं, मानो मेरे भाई महायशस्‍वी राजा पाण्‍डु की मृत्‍यु आज हुई हैं। मेरे कुछ लोग शीघ्र ही वारणावत नगर में जायें और कुन्ति भोज कुमारी कुन्‍ती तथा वीरवर पाण्‍डवों का आदर-पूर्वक दाहसंस्‍कार करायें। उन सब के कुलोचित शुभ और महान् सत्‍कार की व्‍यवस्‍था करें तथा जो-जो उस घर में जलकर मरे है, उनके सुहद् एवं सगे-सम्‍बन्‍धी भी उन मृतको का दाह संस्‍कार करने के लिये वहाँ जाये। इस दशा में मुझे पाण्‍डवों तथा कुन्‍ती का हित करने के लिये जो-जो कार्य करना चाहिये या जो-जो कार्य मुझसे हो सकता हैं, वह सब धन खर्च करके सम्‍पन्‍न किया जाय।’

यों कहकर अम्बिकानन्‍दन धृतराष्‍ट्र ने जाति-भाईयों से घिरे यों कहकर पाण्‍डवों के लिये जलाञ्जलि देने का कार्य किया। उस समय भीष्‍म, सत्र कौरव तथा पुत्रों सहित धृतराष्‍ट्र एकत्र हो महात्‍मा पाण्‍डवों को जलाञ्जलि देने की इच्‍छा से गंगा जी के निकट गये। उन सबके शरीर पर एक-एक ही वस्‍त्र था। वे सभी आभूषण और पगड़ी आदि उतारकर आनन्‍दशून्‍य हो रहे थे। उस समय सब लोग अत्‍यन्‍त शोकमग्‍न हो एक साथ रोने और विलाप करने लगे। कोई कहता- ‘हा कुरुवंश विभूषण युधिष्ठिर! दूसरे कहते- हा भीमसेन! अन्‍य कोई बोलते- ‘हा अर्जुन!’ इसी प्रकार दूसरे लोग ‘हा नकुल-सहदेव!’ कहकर पुकार उठते थे। तब लोगों ने कुन्‍ती देव के लिये शोकार्त होकर जलाञ्जलि दी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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