सप्तविंश (27) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (आश्रमवास पर्व)
महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: सप्तविंश अध्याय: श्लोक 1-26 का हिन्दी अनुवाद
प्रभो! उन आश्रमों में जहाँ-तहाँ मृगों के झुंड निर्भय और शान्तचित्त होकर आराम से बैठे थे। पक्षियों के समुदाय निःशंक होकर उच्च स्वर से कलरव करते थे। मोरों के मधुर केकारव, दात्यूह नाम पक्षियों के कल-कूजन और कोयलों की कुहू-कुहू ध्वनि हो रही थी। उनके शब्द बड़े ही सुखद तथा कानों और मन को हर लेने वाले थे। कहीं-कहीं स्वाध्यायशील ब्राह्मणों के वेद-मन्त्रों का गम्भीर घोष गूँज रहा था और इन सबके कारण उन आश्रमों की शोभा बहुत बढ़ गयी थी एवं वह आश्रम फल-मूल का आहार करने वाले महापुरुषों से सुशोभित हो रहा था। राजन! उस समय राजा युधिष्ठिर ने तपस्वियों के लिये लाये हुए सोने और ताँबे के कलश, मृगचर्म, कम्बल, स्नुक, स्रुवा, कमण्डलु, बटलोई, कड़ाही, अन्यान्य लोहे के बने हुए पात्र तथा और भी भाँति-भाँति के बर्तन बाँटे। जो जितना और जो-जो बर्तन चाहता था, उसको उतना ही और वही बर्तन दिया जाता था। दूसरा भी आवश्यक पात्र दे दिया जाता था। इस प्रकार धर्मात्मा राजा पृथ्वीपति युधिष्ठिर आश्रमों में घूम-घूमकर वह सारा धन बाँटने के पश्चात धृतराष्ट्र के आश्रम पर लौट आये। वहाँ आकर उन्होंने देखा कि राजा धृतराष्ट्र नित्य कर्म करके गांधारी के साथ शान्तभाव से बैठे हुए हैं और उनसे थोड़ी ही दूर पर शिष्टाचार का पालन करने वाली माता कुन्ती शिष्या की भाँति विनीत भाव से खड़ी हैं। युधिष्ठिर ने अपना नाम सुनाकर राजा धृतराष्ट्र का प्रणामपूर्वक पूजन किया और 'बैठो' यह आज्ञा मिलने पर वे कुश के आसन पर बैठ गये। भरतश्रेष्ठ! भीमसेन आदि पांडव भी राजा के चरण छूकर प्रणाम करने के पश्चात उनकी आज्ञा से बैठ गये। उनसे घिरे हुए कुरुवंशी राजा धृतराष्ट्र वैसी ही शोभा पा रहे थे, जैसे उज्ज्वल ब्रह्मतेज धारण करने वाले बृहस्पति देवताओं से घिरे हुए सुशोभित होते हैं। वे सब लोग इस प्रकार बैठे ही थे कि कुरुक्षेत्र निवासी शतयूप आदि महर्षि वहाँ आ पहुँचे। देवर्षियों से सेवित महातेजस्वी विप्रवर भगवान व्यास ने भी शिष्यों सहित आकर राजा को दर्शन दिया। उस समय कुरुवंशी राजा धृतराष्ट्र, पराक्रमी कुन्तीकुमार युधिष्ठिर तथा भीमसेन आदि ने उठकर समागत महर्षियों को प्रणाम किया। तदनन्तर शतयूप आदि से घिरे हुए नवागत महर्षि व्यास राजा धृतराष्ट्र से बोले- "बैठ जाओ।" इसके बाद व्यास जी स्वयं एक सुन्दर कुशासन पर, जो काले मृगचर्म से आच्छादित तथा उन्हीं के लिये बिछाया गया था, विराजमान हुए। फिर व्यास जी की आज्ञा से अन्य सब महातेजस्वी श्रेष्ठ द्विजगण चारों ओर बिछे हुए कुशासनों पर बैठ गये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत आश्रमवास पर्व में व्यास का आगमन विषयक सत्ताईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज