अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
संजय ने कहा- राजन! कर्ण ने धृष्टद्युम्न आदि पाण्डव वीरों को खड़ा देख बड़ी उतावली के साथ शत्रुसंहारकारी पांचालों पर धावा किया। विजय से उल्लासित होने वाले पांचाल वीर शीघ्रता पूर्वक आक्रमण करते हुए महामना कर्ण की अगवानी के लिये उसी प्रकार आगे बढ़े, जैसे हंस महासागर की ओर बढ़ते हैं। तदनन्तर दोनों सेनाओं में सहसा सहस्रों शंखों की ध्वनि प्रकट हुर्इ, जो हृदय को कम्पित कर देती थी। साथ ही भयंकर भेरीनाद भी होने लगा। उस समय नाना प्रकार के बाणों के गिरने, हाथियों के चिंग्घाहड़ने, घोड़ों के हींसने, रथ के घर्घराने तथा वीरों के सिंह-नाद करने का दारुण शब्द वहाँ गूंज उठा। पर्वत, वृक्ष और समुद्रों सहित पृथ्वी, वायु तथा मेघों सहित आकाश एवं सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह और नक्षत्रों सहित स्वर्ग स्पष्ट, ही घुमते-से जान पड़े। इस प्रकार समस्त प्राणियों ने उस तुमुल नाद को सुना और सब-के-सब व्यथित हो उठे। उनमें जो दुर्बल प्राणी थे, वे प्राय: मर गये। तत्पश्चात जैसे इन्द्र असुरों की सेना का विनाश करते हैं, उसी प्रकार अत्यन्त क्रोध में भरे हुए कर्ण ने शीघ्रतापूर्वक् अस्त्र चलाकर पाण्डव सेना का संहार आरम्भ किया। पाण्डवों की सेना में प्रवेश करके बाणों की वर्षा करते हुए कर्ण ने प्रभद्रकों के सतहत्तर प्रमुख वीरों को मार डाला। तदनन्तर रथियों में श्रेष्ठ कर्ण ने सुन्दर पंखवाले पच्चीस पैने बाणों द्वारा पच्चीस पांचालों को काल के गाल में भेज दिया। वीर कर्ण ने शत्रुओं के शरीर को विदीर्ण कर देने वाले सुवर्णमय पंखयुक्त नाराचों द्वारा सैकड़ों और हजारों चेदि देशीय वीरों का वध कर डाला। महाराज! इस प्रकार समरांगण में अलौकिक कर्म करने वाले कर्ण को पांचाल रथियों ने चारों ओर से घेर लिया। भारत! तब उस रणक्षेत्र में धर्मात्मा वैकर्तन कर्ण ने पांच दु:सह बाणों का संधान करके भानुदेव, चित्रसेन, सेना बिन्दु, तपन तथा शूरसेन इन पांच पांचाल वीरों का संहार कर दिया। उस महासमर में बाणों द्वारा उन शूरवीर पांचालों के मारे जाने पर पांचालों की सेना में महान हाहाकार मच गया। महाराज! फिर दस पांचाल महारथियों ने आकर कर्ण को घेर लिया, परंतु कर्ण ने अपने बाणों द्वारा पुन: उन सबको तत्काल मार डाला। माननीय नेरश! कर्ण के दो दुर्जय पुत्र सुषेण और चित्रसेन उसके पहियों की रक्षा में तत्पर हो प्राणों का मोह छोड़कर युद्ध करते थे। कर्ण का ज्येष्ठ पुत्र महारथी वृषसेन पृष्ठरक्षक था। वह स्वयं ही कर्ण के पृष्ठभाग की रक्षा कर रहा था। उस समय प्रहार करने वाले राधा पुत्र कर्ण को मार डालने की इच्छा से धृष्टद्युम्न, सात्यकि, द्रौपदी के पांचों पुत्र, भीमसेन, जनमेजय, शिखण्डी, प्रमुख प्रभद्रक वीर, चेदि, केकय और पांचाल देश के योद्धा, नकुल-सहदेव तथा मत्स्य देशीय सैनिकों ने कवच से सुसज्जित हो उस पर धावा बोल दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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