महाभारत शल्य पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-19

एकोनत्रिंश (29) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


बची हुई समस्त कौरव सेना का वध, संजय का कैद से छूटना, दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश तथा युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना


संजय कहते हैं- महाराज! तदनन्तर शकुनि के अनुचर क्रोध में भर गये और प्राणों का भय छोड़ कर उन्होंने उस महासमर में पाण्डवों को चारों ओर से घेर लिया। उस समय सहदेव की विजय को सुरक्षित रखने का दृढ़ निश्चय लेकर अर्जुन ने उन समस्त सैनिकों को आगे बढ़ने से रोका। उनके साथ तेजस्वी भीमसेन भी थे, जो कुपित हुए विषधर सर्प के समान दिखायी देते थे। सहदेव को मारने की इच्छा से शक्ति, ऋष्टि और प्रास हाथ में लेकर आक्रमण करने वाले उन समस्त योद्धाओं का संकल्प अर्जुन ने गाण्डीव धनुष के द्वारा व्यर्थ कर दिया। सहदेव पर धावा करने वाले उन योद्धाओं की अस्त्र-शस्त्र युक्त भुजाओं, मस्तकों और उनके घोड़ों को भी अर्जुन ने भल्लों से काट गिराया। रणभूमि में विचरते हुए विश्वविख्यात वीर सव्यसाची अर्जुन के द्वारा मारे गये वे घोड़े और घुड़सवार प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।

अपनी सेना का इस प्रकार संहार होता देख राजा दुर्योधन को बड़ा क्रोध हुआ। उसने मरने से बचे हुए बहुत से रथियों, हाथी सवारों, घुड़सवारों और पैदलों को सब ओर से एकत्र करके उन सबसे इस प्रकार कहा- ‘वीरो! तुम सब लोग रणभूमि में समस्त पाण्डवों तथा उनके मित्रों से भिड़कर उन्हें मार डालो और पाञ्चालराज धृष्टद्युम्न का भी सेना सहित संहार करके शीघ्र लौट आओ’। राजन! आपके पुत्र की आज्ञा से उसके उस वचन को शिरोधार्य करके वे रणदुर्मद योद्धा युद्ध के लिये आगे बढ़े।

उस महासमर में शीघ्रतापूर्वक आक्रमण करने वाले मरने से बचे हुए उन सैनिकों पर समस्त पाण्डवों ने विषधर सर्प के समान आकार वाले बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। भरतश्रेष्ठ! वह सेना युद्धस्थल में आकर महात्मा पाण्डवों द्वारा दो ही घड़ी में मार डाली गयी। उस समय उसे कोई भी अपना रक्षक नहीं मिला। वह युद्ध के लिये कवच बांधकर प्रस्थित तो हुई, किंतु भय के मारे वहाँ टिक न सकी। चारों ओर दौड़ते हुए घोड़ों तथा सेना के द्वारा उड़ायी हुई धूल से वहाँ का सारा प्रदेश छा गया था। अतः समरभूमि में दिशाओं तथा विदिशाओं का कुछ पता नहीं चलता था। भारत! पाण्डव सेना से बहुत से सैनिकों ने निकल कर युद्ध में एक ही मुहूर्त के भीतर आपके सम्पूर्ण योद्धाओं का संहार कर डाला। भरतनन्दन! उस समय आपकी वह सेना सर्वथा नष्ट हो गयी। उसमें से एक भी योद्धा बच न सका। प्रभो! भरतवंशी नरेश! आपके पुत्र के पास ग्यारह अक्षौहिणी सेनाएं थीं; परंतु युद्ध में पाण्डवों और सृंजयों ने उन सबका विनाश कर डाला।

राजन! आपके दल के उन सहस्रों महामनस्वी राजाओं में एकमात्र दुर्योधन ही उस समय दिखायी देता था; परंतु वह भी बहुत घायल हो चुका था। उस समय उसे सम्पूर्ण दिशाएं और सारी पृथ्वी सूनी दिखायी दी। वह अपने समस्त योद्धाओं से हीन हो चुका था। महाराज! दुर्योधन ने युद्धस्थल में पाण्डवों को सर्वथा प्रसन्न, सफल मनोरथ और सब ओर से सिंहनाद करते देख तथा उन महामनस्वी वीरों के बाणों की सनसनाहट सुनकर शोक से संतप्त हो वहाँ से भाग जाने का विचार किया। उसके पास न तो सेना थी और न कोई सवारी ही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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