महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 152 श्लोक 1-15

द्विपंचाशदधिकततम (152) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सैन्यनिर्याण पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: द्विपंचाशदधिकततम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
  • वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर राजा युधिष्ठिर ने एक चिकने और समतल प्रदेश में जहाँ घास और ईंधन की अधिकता थी, अपनी सेना का पड़ाव डाला। (1)
  • शमशान, देवमन्दिर, महर्षियों के आश्रम, तीर्थ और सिद्ध क्षेत्र इन सबका परित्‍याग करके उन स्‍थानों से बहुत दूर ऊसर रहित मनोहर शुद्ध एवं पवित्र स्‍थान में जाकर कुन्‍ती पुत्र महामति युधिष्ठिर ने अपनी सेना को ठहराया। (2-3)
  • तत्‍पश्‍चात समस्‍त वाहनों के विश्राम कर लेने पर स्‍वंय भी विश्राम सुख का अनुभव करके भगवान श्रीकृष्ण उठे ओर सैकडों हजारों भूमिपालों से घिर कर कुन्‍ती पुत्र अर्जुन के साथ आगे बढे। उन्‍होंने दुर्योधन के सैकडों सैनिक दलों को दूर भगाकर वहाँ सब ओर विचरण करना प्रारम्‍भ किया। (4-5)
  • द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न तथा प्रतापशाली एवं उदार रथी सत्‍यकपुत्र युयुधान ने शिविर बनाने योग्‍य भूमि नापी। (6)
  • भरतनन्‍दन जनमेजय! कुरुक्षेत्र में हिरण्वती नामक एक पवित्र नदी है, जो स्‍वच्‍छ एवं विशुद्ध जल से भरी है। उसके तटपर अनेक सुन्‍दर घाट हैं। उस नदी में कंकड, पत्‍थर और कीचड़ का नाम नहीं है। उसके समीप पहुँचकर भगवान श्रीक्रष्‍ण ने खाई खुदवायी और उसकी रक्षा के लिये पहरेदारों को नियुक्‍त करके वहीं सेना को ठहराया। महात्‍मा पाण्‍डवों के लिये शिविर का निर्माण जिस विधि से किया गया था, उसी प्रकार के भगवान केशव ने अन्‍य राजाओं के लिये शिविर बनवाये। (7-9)
  • राजेन्‍द्र! उस समय राजाओं के लिये सैकड़ों और हजारों की संख्‍या में दुर्धर्ष एवं बहुमूल्‍य शिविर पृथक-पृथक बनवाये गये थे। उनके भीतर बहुत से काष्‍ठों तथा प्रचुर मात्रा में भक्ष्‍य-भोज्‍य अन्‍न एवं पान-सामग्री का संग्रह किया गया था। वे समस्‍त शिविर भूतलपर रहते हुए विमानों के समान सुशोभित हो रहे थे। (10-11)
  • वहाँ सैंकड़ों विद्वान शिल्‍पी और शास्‍त्रविशारद वैद्य वेतन देकर रखे गये थे, जो समस्‍त आवश्‍यक उपकरणों के साथ वहाँ रहते थे। (12)
  • प्रत्‍येक शिविर में प्रत्‍यञ्चा, धनुष, कवच, अस्‍त्र-शस्‍त्र, मधु, तथा राल का चूरा इन सबके पहाड़ों जैसे ढेर लगे हुए थे। (13)
  • राजा युधिष्ठिर ने प्रत्‍येक शिविर में प्रचुर जल, सुन्‍दर घास, भूसी और अग्नि का संग्रह करा रखा था। (14)
  • बड़े-बड़े यन्‍त्र, नाराच, तोमर, फरते, धनुष, कवच, ऋषि और तरकस- ये सब वस्‍तुएं भी उन सभी शिविरों में संग्रहीत थीं। (15)
  • वहाँ लाखों योद्धाओं के साथ युद्ध करने में समर्थ पर्वतों के समान विशालकाय बहुत से हाथी दिखायी देते थे, जो कांटेदार साज-सामान, लोहे के कवच तथा लोहे की ही शूलधारण किये हुए थे। (16)
  • भारत! पाण्‍डवों ने कुरुक्षेत्र में जाकर अपनी सेना का पड़ाव डाल‍ दिया है, यह जानकर उनसे मित्रता रखने वाले बहुत से राजा अपनी सेना और सवारियों के साथ उनके पास आये, जहाँ वे ठहरे थे। (17)
  • जिन्‍होंने यथासमय ब्रह्मचर्यव्रत का पालन, यज्ञों में सोमरस का पान तथा प्रचुर दक्षिणाओं का दान किया था, ऐसे भूपालगण पाण्‍डवों की विजय के लिये कुरुक्षेत्र में पधारे। (18)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत सैन्‍यनिर्वाणपर्व में शिविर आदिका निर्माणविषयक एक सौ बावनवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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