त्रयोविंश (23) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
ये पर्वतीय, तेजस्वी एवं प्रतापी राजा भगदत्त हाथ में हाथी का अंकुष लिये पृथ्वी पर सो रहे हैं इन्हें अर्जुन ने मार गिराया था। इन्हें हिंसक जीव-जन्तु खा रहे हैं। इनके सिर पर यह सोने की माला विराज रही है, जो केषों की सोभा बढ़ाती-सी जान पड़ती है। जैसे वृत्रासुर के साथ इन्द्र का अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ था, उसी प्रकार इन भगदत्त के साथ कुन्ती कुमार अर्जुन का अत्यन्त दारुण एवं रोमांचकारी युद्ध हुआ था। उन महाबाहु ने कुन्तीकुमार धनंजय के साथ युद्ध करके उन्हे संशय में डाल दिया था; परंतु अंत में ये उन कुन्तीकुमार के हाथ से ही मारे गये। संसार में शौर्य और बल में जिनकी समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है, वे ही ये युद्ध में भयंकर कर्म करने वाले भीष्म जी घायल हो बाणशय्या पर सो रहे हैं। श्रीकृष्ण! देखो, ये सूर्य के समान तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म कैसे सो रहे हैं, ऐसा जान पड़ता है, मानो प्रलयकाल में काल प्रेरित हो सूर्यदेव आकाश से भूमि पर गिर पड़े हैं। केशव! जैसे सूर्य सारे जगत को ताप देकर अस्ताचल को चले जाते हैं, उसी तरह ये पराक्रमी मानव सूर्य रणभूमि में अपने शस्त्रों के प्रताप से शत्रुओं को संतप्त करके अस्त हो रहे हैं। जो ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी रहकर कभी मर्यादा से च्युत नहीं हुए हैं, उन भीष्म को शूरसेवित वीरोचित शयन बाणश्य्या पर सोते हुए देख लो। जैसे भगवान स्कन्द सरकण्डों के समूह पर सोये थे, उसी प्रकार ये भीष्म जी कर्णी, नालीक और नाराच आदि बाणों की उत्तम शय्या बिछाकर उसी का आश्रय ले सो रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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