चतुश्चत्वारिंश (44) अध्याय: वन पर्व (इन्द्रलोकाभिगमन पर्व)
महाभारत: वन पर्व: चतुश्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर देवराज इन्द्र का अभिप्राय जानकर देवताओं और गन्धवों ने उत्तम अर्घ्य लेकर कुन्तीकुमार अर्जुन का यथोचित्त पूजन किया। राजकुमार अर्जुन को पाद्य, (अर्घ्य) आचमनीय आदि उपचार अर्पित करके देवताआं ने उन्हें इन्द्रभवन में पहुँचा दिया। इस प्रकार देव समुदाय से पूजित हो पाण्डुकुमार अर्जुन अपने पिता के घर में रहने और उनसे उपसंहार सहित महान् अस्त्रों की शिक्षा ग्रहण करने लगे। उन्होंने इन्द्र के हाथ से उनके प्रिय एवं दुःसह अस्त्र वज्र और भारी गड़गड़ाहट पैदा करने वाली उन अशनियों को ग्रहण किया, जिनका प्रयोग करने पर जगत् में मेघों की घटा घिर आती और मयूर नृत्य करने लगते हैं। सब अस्त्रों की शिक्षा ग्रहण कर लेने पर पाण्डुनन्दन पार्थ ने अपने भाईयों का स्मरण किया। परन्तु पुरन्दर के विशेष अनुरोध से वे (मानव-गणना के अनुसार) पांच वर्षों तक वहाँ सुखपूर्वक ठहर रहे। तदनन्तर इन्द्र ने अस्त्र शिक्षा में निपुण कुन्तीकुमार से उपयुक्त अवसर आने पर कहा- ‘कुन्तीनन्दन! तुम चित्रसेन से नृत्य और गति की शिक्षा ग्रहण कर लो। कुन्तीनन्दन! मनुष्यलोक में जो अब तक प्रचलित नहीं है, देवताओं की उस वाद्य कला का ज्ञान प्राप्त कर लो। इससे तुम्हारा भला होगा’। पुरन्दर ने अर्जुन को संगीत की शिक्षा देने के लिये उन्हीं के मित्र चित्रसेन को नियुक्त कर दिया। मित्र से मिलकर दुःख, शोक से रहित अर्जुन बड़े प्रसन्न हुए। चित्रसेन ने उन्हें गीत, वाद्य और नृत्य की बार-बार शिक्षा दी तो भी द्यूतजनित अपमान का स्मरण करके तपस्वी अर्जुन को तनिक भी शांति नहीं मिली। उन्हें दुःशासन तथा सुबलपुत्र शकुनि के वध के लिये मन में बड़ा रोष होता था तथा चित्रसेन के सहवास से कभी-कभी उन्हें अनुपम प्रसन्नता प्राप्त होती थी, जिससे उन्होंने गीत, नृत्य और वाद्य की उस अनुपम कला को (पूर्णरूप से) उपलब्ध कर लिया। शत्रुवीरों का हनन करने वाले वीर अर्जुन ने नृत्य सम्बन्धी अनेक गुणों की शिक्षा पायी। वाद्य और गीतविषयक सभी गुण सीख लिये तथापि भाइयों और माता कुन्ती का स्मरण करके उन्हें कभी चैन नहीं पड़ता था।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत इन्द्रलोकभिगमनपर्व में अर्जुन की अस्त्रादिशिक्षा से सम्बन्ध रखने वाला चौवालीसवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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