महाभारत विराट पर्व अध्याय 70 श्लोक 1-14

सप्ततितम (70) अध्याय: विराट पर्व (वैवाहिक पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का राजा विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर नियत समय तक अपनी प्रतिज्ञा पालन करके अग्नि के समान तेजस्वी पाँचों भाई महारथी पाण्डव तीसरे दिन स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण कर समस्त राजोचित आभूषणों से विभूषित हो राज सभा में क्षर पर सिथत मदोन्मत्त गजराजों की भाँति सुशोभित होने लगे। वे राजा युधिष्ठिर को आगे करके विराट की सभा में गये और राजाओं के लिये रक्खे हुए सिंहासनों पर बैठे। उस समय वे भिन्न-भिन्न यज्ञ वेदियों पर प्रज्वलित अग्नियों के समान प्रकाशित हो रहे थे। पाण्डवों के वहाँ बैठ जाने पर राजा विराट अपने समस्त राजकाज करने के लिये सभा में आये।

वहा प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी श्री सम्पन्न पाण्डवों को देखकर पृथ्वीपति विराट ने दो घड़ी तक मन ही मन कुछ विचार किया। फिर वे कुपित होकर देवता के समान स्थित मरुद्गणों से घिरे हुए देवराज इन्द्र के तुल्य सुशोभित कंक से बोले- ‘कंक! तुम्हें तो मैंने पासा फेंकने वाला समभासद बनाया था। आज बन ठन कर राज सिंहासन पर कैसे बैठ गये?’

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! मोनो परिहास करने के लिये कहा गया हो, ऐसा विराट का यह वचन सुनकर अर्जुन मुसकराते हुए इस प्रकार बोले।

अर्जुन ने कहा- राजन! आपके राजासन की तो बात ही क्या है, ये तो इन्द्र के भी आधे सिंहासन पर बैठने के अधिकारी हैं। ये ब्राह्मणभक्त, शास्त्रों के विद्वान, त्यागी, यज्ञशील तथा दृढ़ता के साथ अपने व्रत का पालन करने वाले हैं। ये मूर्तिमान धर्म हैं तथा पराक्रमी पुरुषों में रेष्ठ हैं। इस जगत में ये सबसे बढ़कर बुद्धिमान और तपस्या के परम आश्रय हैं। ये नाना प्रकार के ऐसे अस्त्रों को जानते हैं, जिन्हें इस चराचर त्रिलोकी में दूसरा मनुष्य न तो जानता है और न कभी जान सकेगा। जिन अस्त्रों को देवता, असुर, मनुष्य, राक्षस, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर और बड़े बड़े नाग भी नहीं जानते, उन सबका इन्हें ज्ञान है। ये दीर्घदर्शी, महातेजस्वी तथा नगर और देश के लोगों को अत्यन्त प्रिय हैं। ये पाण्डवों में अतिरथी वीर हैं एवं सदा यज्ञ और धर्म के अनुष्ठान में संलग्न तथा मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले हैं। ये महर्षियों के समान हैं, राजर्षि हैं और समस्त लोकों में विख्यात हैं। बलवान, धैर्यवान, चतुर, सत्यवादी और जितेन्द्रिय हैं। धन और संग्रह की दृष्टि से ये इन्द्र और कुबेर के समान हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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