पंचचत्वारिंश (45) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: पंचचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
कहते हैं, प्राचीन काल में लुटेरे डाकुओं ने आरट्ट देश से किसी सती स्त्री का अपहरण कर लिया और अधर्म पूर्वक उसके साथ समागम किया। तब उसने उन्हें यह शाप दे दिया- मैं अभी बालिका हूँ और मेरे भाई-बन्धु मौजूद हैं तो भी तुम लोगों ने अधर्म पूर्वक मेरे साथ समागम किया है। इसलिए इस कुल की सारी स्त्रियाँ व्यभिचारिणी होंगी। नराधमों! तुम्हें इस घोर पाप से कभी छुटकारा नहीं मिलेगा। कुरु, पांचाल, शाल्व, मत्स्य, नैमिष, कोसल, काशी, अंग, कलिंग, मगध और चेदि देशों के बड़भागी मनुष्य सनातन धर्म को जानते हैं। भिन्न-भिन्न देशों में बाहीक निवासियों को छोड़कर प्रायः सर्वत्र श्रेष्ठ पुरुष उपलब्ध होते हैं। मत्स्य से लेकर कुरु और पांचाल देश तक, नैमिषारण्य से लेकर चेदि देश तक जो लोग निवास करते हैं, वे सभी श्रेष्ठ एवं साधु पुरुष हैं और प्राचीन धर्म का आश्रय लेकर जीवन निर्वाह करते हैं। मद्र और पंचनद प्रदेशों में ऐसी बात नहीं है। वहाँ के लोग कुटिल होते हैं। राजा शल्य! ऐसा जानकर तुम जड़ पुरुषों के समान धर्मोपदेश की ओर से मुँह मोड़कर चुपचाप बैठे रहो। तुम बाहीक देश के लोगों के राजा और रक्षक हो; अतः उनके पुण्य और पाप का भी छठा भाग ग्रहण करते हो। अथवा उनकी रक्षा न करने के कारण तुम केवल उनके पाप में ही हिस्सा बँटाते हो। प्रजा की रक्षा करने वाला राजा ही उसके पुण्य का भागी होता है; तुम तो केवल पाप के ही भागी हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विभिन्न जातियों के कर्म को अपनाने के कारण वह उन जातियों के नाम से निर्दिष्ट होने लगता है।
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