एकोनविंश (19) अध्याय: स्त्री पर्व (स्त्रीविलाप पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
जो शत्रु समूहों का संहार करने वाला था, वह दुर्मुख प्रतिज्ञा पालन करने वाला संग्राम शूर भीमसेन के हाथों मारा जाकर समर में सम्मुख सो रहा है। तात श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है, इसलिये सप्तमी के चन्द्रमा की भाँति सुशोभित हो रहा है। श्रीकृष्ण! देखो मेरे इस रणशूर पुत्र का मुख कैसा तेजस्वी है? पता नहीं, मेरा यह वीर पुत्र किस तरह शत्रुओं के हाथ से मारा जाकर धूल फांक रहा है। सौम्य! युद्ध के मुहाने पर जिसके सामने कोई ठहर नहीं पाता था उस देवलोक विजयी दुर्मुख को शत्रुओं ने कैसे मार डाला? मधुसूदन! देखो, जो धनुर्धरों का आदर्श था वही यह धृतराष्ट्र का पुत्र चित्रसेन मारा जाकर पृथ्वी पर पड़ा हुआ है। विचित्र माला और आभूषण धारण करने वाले उस चित्रसेन को घेरकर शोक से कातर हो रोती हुई युवतियां हिंसक जन्तुओं के साथ उसके पास बैठी हैं। श्रीकृष्ण! एक ओर स्त्रियों के रोने की आवाज है तो दूसरी ओर हिंसक जन्तुओं की गर्जना हो रही है। यह अद्भुत दृश्य मुझे विचित्र प्रतीत होता है। माधव! देखो, वह देवतुल्य नव-युवक विविंशति, जिसकी सुन्दरी स्त्रियां सदा सेवा किया करती थीं, आज विध्वस्त होकर धूल में पड़ा है। श्रीकृष्ण! देखो, बाणों से इसका कवच छिन्न-भिन्न हो गया है। युद्ध में मारे गये इस वीर विविंशति को गीध चारों ओर से घेरकर बैठे हैं। जो शूरवीर समरांगण में पाण्डवों की सेना के भीतर घुसकर लोहा लेता था, वही आज सत्पुरुषोचित वीरशय्या पर शयन कर रहा है। श्रीकृष्ण! देखो, विविंशति का मुख अत्यंत उज्ज्वल है, इसके अधरों पर मुस्कराहट खेल रही है, नासिका मनोहर और भौहें सुन्दर हैं यह मुख चन्द्रमा के समान शोभा पा रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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