चतुर्थ (4) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
तत्पश्चात विदुर ने भी ऐश्वर्यशाली कुरुवंशी प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र के ऊपर जल छिड़ककर उन्हें होश में लाने की चेष्टा की। राजेन्द्र! प्रजानाथ! धीरे-धीरे होश में आने पर धृतराष्ट्र अपने घर की स्त्रियों को वहाँ उपस्थित जान पागल के समान चुपचाप बैठे रह गये। तदनन्तर दीर्घकाल तक चिन्ता करने के पश्चात वे बारंबार लंबी साँस खींचते हुए अपने पुत्रों की निन्दा और पाण्डवों की अधिक प्रशंसा करने लगे। उन्होंने अपनी और सुबलपुत्र शकुनि की बुद्धि को भी कोसा। फिर बहुत देर तक चिन्तामग्न रहने के पश्चात वे बारंबार काँपने लगे। फिर मन को किसी तरह स्थिर करके राजा ने धैर्य धारण किया और गवल्गण के पुत्र सारथि संजय से इस प्रकार पूछा- ‘संजय! तुमने जो बात कही है, वह तो मैंने सून ली, किंतु एक बात बताओ। निरन्तर विजय की इच्छा रखने वाला मेरा पुत्र दुर्योधन अपनी विजय से निराश हो कहीं यमराज के लोक में तो नहीं चला गया? संजय! तुम इस कही हुई बात को भी फिर यथार्थ रूप से कह सुनाओ। जनमेजय! उनके ऐसा कहने पर सारथि संजय राजा से इस प्रकार बोला- राजन! महारथी वैकर्तन कर्ण अपने पुत्रों तथा शरीर का मोह छोड़कर युद्ध करने वाले महाधनुर्धर सूत जातीय भाईयों के साथ मारा गया। साथ ही यशस्वी पाण्डुपुत्र भीमसेन ने रणभूमि में दुःशासन को मार दिया और क्रोधपूर्वक उसका खून भी पी लिया’। इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में धृतराष्ट्र का शोक नामक चैथा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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