महाभारत विराट पर्व अध्याय 35 श्लोक 1-16

पन्चत्रिंश (35) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: पन्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
कौरवों का उत्तर दिशा की ओर से आकर विराट की गौओं का अपहरण और गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध के लिये उत्साह दिलाना

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! जिस समय अपने पशुओं को छुड़ा लाने की इच्छा से राजा विराट त्रिगतों से युद्ध करने के लिये गये, उसी समय दुर्योधन ने अपने मन्त्रियों के साथ विराटदेश पर चढ़ाई की। राजन्! भीष्म, द्रोण, कर्ण, अस्त्रविद्या के श्रेष्ठ विद्वान् कृपाचार्य, अश्वत्थामा, शकुनि, दुःशासन, विविंशति, विकर्ण, पराक्रमी चित्रसेन, दुर्मुख, दुःशल तथा अन्य महारथी भी दुर्योधन के साथ थे। इन सबने राजा विराट के मत्स्यदेश में आकर उनके गोष्ठों में भगदड़ मचा दी और बड़े वेग से बलपूर्वक गोधन का अपहरण करना आरम्भ किया। वे कौरव वीर राजा विराट की साठ हतार गौओं को विशाल रथ समूहों द्वारा चारों ओर से घेरकर हाँक चले। उस समय वहाँ भयंकर मारपीट हुई। उन महारथियों द्वारा मारे जाते हुए गोष्ठ के ग्वालों का जोर-जोर से होने वाला आर्तनाद बहुत दूर तक सुनायी देता था।

तब उन गौओं के रक्षक भयभीत हो तुरंत ही रथपर बैठकर आर्त की भाँति विलाप करता हुआ राजधानी की ओर चल दिया। राजा विराट के नगर में पहुँचकर वह राजभवन के समीप गया और रथ से उतरकर तुरंत यह समाचार सूचित करने के लिये महल के भीतर चला गया। वहाँ मत्स्यराज के मानी पुत्र भूमिन्जय (उत्तर) से मिलकर उस गोप ने उनसे राज्य के पशुओं के अपहरण का सब समाचार बताते हुए कहा- ‘राजकुमार! आप इस राष्ट्र की वृद्धि करने वाले हैं। आज कौरव आपकी साठ हजार गौओं को हाँक ले जा रहे हैं। उनके हाथ से उस गोधन को जीत लाने के लिये उठ खड़े होइये। ‘राजपुत्र! आप इस राज्य के हिर्तषी हैं, अतः स्वयं ही युद्ध के लिये तैयार होकर निकलिये। मत्स्यनरेश ने अपनी अनुपस्थिति में आपको ही यहाँ का रक्षक नियुक्त किया है।

‘वे सभा में आपसे प्रभावित होकर आपकी प्रशंसा में बड़ी-बड़ी किया करते हैं। उनका कहना है- -मेरा यह पुत्र उत्तर मेरे अनुरूप शूरवीर और इस वंश का भार वहन करने में समर्थ है। ‘मेरा यह लाड़ला बेटा बाण चलाने तथा अन्यान्य अस्त्रों के प्रयोग की कला में भी निपुण, सदा युद्ध के लिये उद्यत रहने वाला और वीर है।’ उन महाराज का यह कथन आज सत्य सिद्ध होना चाहिये। ‘पशुसम्पत्ति वाले राजाओं मे आप श्रेष्ठ हैं; अतः कौरवों को परास्त करके अपने पशुओं को लौटा लाइये और बाधों की भयंकर अग्नि से इन कौरवों की सारी सेनाओं को भस्म कर डालिये। ‘जैसे हाथियों के झुंड का स्वामी गजराज अपने विरोधियों को रौंद डालता है, उसी प्रकार आप अपने धनुष से छूटे हुए सुवर्णमय पंख से सुशोभित ओर झुकी हुई गाँठ वाले तीखे बाणों द्वारा विपक्षियों की विपुल वाहिनी को छिन्न-भिन्न कर डालिये। ‘आज शत्रुओं के बीच में जोर-जोर से गूँजने वाली धनुषरूपी वीणा बजाइये। पाश (प्रत्यंचा बाँधने के सिरे) उसके उपधान (खूँटियाँ) हैं, प्रत्यंचातार है, धनुष उसका दण्ड है और बाण ही उससे झंकृत होने वाले वर्ण (स्वर) है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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