महाभारत विराट पर्व अध्याय 48 श्लोक 1-15

अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


कर्ण की आत्मप्रशंसापूर्ण अहंकारोक्ति

कर्ण बोला - मैं आप सब आयुष्मानों को भयभीत एवं त्रस्त सा देखता हूँ। आपमें से किसी का मन युद्ध में नहीं लग रहा है एवं सभी चन्चल दिखायी देते हैं। यदि यह मत्स्य देश का राजा हो अथवा यदि स्वयं अर्जुन आया हो, तो भी जैसे वेला समुद्र को रोक देती है, उसी प्रकार मैं भी इसे आगे बढ़ने से रोक दूँगा। मेरे धनुष से छूटकर सर्पों की भाँति आगे बढ़ने वाले और झुकी हुई गाँठ वाले बाण कभी अपने लक्ष्य से च्युत नहीं होते। सुनहरी पाँख और तीखी नोक वाले बाण मेरे हाथों से छूटकर अर्जुन को ठीक उसी तरह, ढँक लेंगे; जैसे टिड्डियाँ पेड़ को आच्छादित कर देती हैं।

पाँख वाले बाणों को धनुष की प्रत्यन्चा पर चढ़ाकर भली-भाँति खींचने के पश्चात् मेरी दोनों हथेलियों का ऐसा शब्द होता है, जैसे दो नगाड़े पीअे गये हों। आज वह शब्द आप लोग सुनें। अर्जुन तेरह वर्षों तक वन में समाधि लगाता रहा है, किंतु उसका इस युद्ध में स्नेह है; अतः मुझ पर वह बाणों का प्रहार करेगा। कुन्ती नन्दन धनुजय गुणवान् ब्राह्मण की भाँति मेरे लिये एक सुपात्र व्यक्ति है। अतः आज वह मेरे छोड़े हुए सहस्रों बाण समुदायों का दान स्वीकार करे। यह तीनों लोकों मे महान् धनुर्धर के रूप में विख्यात है और मैं भी नरश्रेष्ठ अर्जुन से किसी बात में कम नहीं हूँ। इधर उधर दोनों ओर से छूटे हुए गीध की पाँखों से युक्त सुवर्णमय बाणों द्वारा आच्छादित हो आज आकाश जुगनुओं से भरा हुआ सा दिखायी देगा।

मैं आज युद्ध में अर्जुन को मारकर पहले की हुई अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दुर्योधन का अक्षय ऋण चुका दूँगा। आज बीच से कअकर इधर उधर बिखर जाने वाले पंख युक्त बाणों का आकाश में फतिंगों की भाँति उड़ना और गिरना देखो। यद्यपि अर्जुन महेन्द्र के समान तेजस्वी है, तो भी आज उसे उल्काओं ( मशालो ) द्वारा गजराज की भाँति इन्द्र के वज्र की तरह कठोर स्पर्श वाले अपने बाणों ये पीड़ित कर दूँगा। जो रथियों से भी बढ़कर अतिरथी, सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ औश्र शूरवीर है, उस कुन्ती पुत्र को आज मैं युद्ध में विवश करके उसी प्रकार दबोच लूँगा, जैसे गरुड़ा साँप को पकड़ लेता है। जो अग्नि की भाँति दुर्धर्ष है, खड्ग, शक्ति और बाण रूपी ईंधन से प्रज्वलित है और अपने शत्रु को भस्म कर रही है, उस अर्जुन रूपी जलती हुई आग को आज मैं महामेघ बनकर बुझा दूँगा। मेरे अश्वों का वेग ही पुरवैया हवा का काम करेगा। रथ समूह की घर्घराहट ही बादलों की गम्भीर गर्जना होगी और बाणों की धारा ही जलधारा का काम करेगी।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः