पच्चषटयधिकद्विशततम (265) अध्याय: वन पर्व (द्रौपदीहरण पर्व )
महाभारत: वन पर्व: पच्चषटयधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
कोटिक बोला- सुन्दर भौंहों वाली सुन्दरी तुम कौन हो? जो कदम्ब की डाली झुकाकर उसके सहारे इस आश्रम में अकेली खड़ी हो, यहाँ तुम्हारी बड़ी शोभा हो रही है। जैसे रात में वायु से आन्दोलित अग्नि की ज्वाला देदीप्यमान दिखाई देती है, उसी प्रकार तुम भी इस आश्रम में अपनी प्रभा बिखेर रही हो। तुम बड़ी रूपवती हो। क्या इन जंगलों में भी तुम्हें डर नहीं लगता है? तुम किसी देवता, यक्ष, दानव अथवा दैत्यों की स्त्री तो नहीं हो या कोई श्रेष्ठ अप्सरा हो? क्या तुम दिव्य रूप धारण करने वाली नाग राजकुमारी हो अथवा वन में विचरने वाली किसी राक्षस की पत्नी हो अथवा राजा वरुण, चन्द्रमा एवं धनाध्यक्ष कुबेर इनमें से किसी की पत्नी हो? अथवा तुम धाता, विधाता, सविता, विभु या इन्द्र के भवन से यहाँ आयी हो? न तो तुम्हीं हमारा परिचय पूछती हो और न हम ही यहाँ तुम्हारे पति के विषय में जानते हैं। भद्रे! हम तुम्हारा सम्मान बढ़ाते हुए तुम्हारे पिता और पति का परिचय पूछ रहे हैं। तुम अपने बन्धु-बान्धव, पति और कुल का यथार्थ परिचय दो और यह भी बताओ कि तुम यहाँ कौन-सा कार्य करती हो? कमल के समान विशाल नेत्रों वाली द्रौपदी! मैं राजा सुरथ का पुत्र हूँ, जिसे साधारण जनता कोटिकास्य के नाम से जानती है और वे जो सुवर्णमय रथ में बैठे हैं तथा वेदी पर स्थापित एवं घी की आहुति पड़ने से प्रज्ज्वलित हुए अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे हैं, त्रिगर्त देश के राजा हैं। ये वीर क्षेमंकर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके बाद जो ये महान् धनुष धारण किये सुन्दर फूलों की मालाएं पहने विशाल नेत्रों वाले वीर तुम्हें निहार रहे हैं, कुलिन्दराज के ज्येष्ठ पुत्र हैं। ये सदा पर्वत पर ही निवास करते हैं। सुन्दरांगि! और वे जो पुष्करणी के समीप श्यामवर्ण के दर्शनीय नवयुवक खड़े हैं, इक्ष्वाकुवंशी राजा सुबल के पुत्र हैं। ये अकेले ही अपने शत्रुओं का संहार करने में समर्थ हैं। लाल रंग के घोड़ों से जुते हुए रथों पर बैठकर यज्ञों में प्रज्वलित अग्नि के समान सुशोभित होने वाले अंगारक, कुञ्जर, गुप्तक, शत्रुंजय संजय, सुप्रवृद्ध, भंयकर, भ्रमर, रवि, शूर, प्रताप तथा कुहन सौवीर देश के ये बारह राजकुमार जिनके रथ के पीछे हाथ में ध्वजा लिये चलते हैं तथा छ: हजार रथी, हाथी, घोड़े और पैदल जिनका अनुगमन करते हैं, उन सौवीरराज जयद्रथ का नाम तुमने सुना होगा। सौभाग्यशालिनी! ये वे ही राजा जयद्रथ दिखायी दे रहे हैं। उनके दूसरे उदार हृदय वाले भाई बलाहक और अनीक-विदारण आदि भी उनके साथ हैं। सौवीर देश के ये प्रमुख बलवान् नवयुवक वीर सदा राजा जयद्रथ के साथ चलते हैं। राजा जयद्रथ इन सहायकों से सुरक्षित हो मरुद्गणों से घिरे हुए देवराज इन्द्र की भाँति यात्रा करते हैं। सुकेशि! हम तुमसे सर्वथा अनजान हैं, अत: हमें भी अपना परिचय दो; तुम किसकी पत्नी और किसकी पुत्री हो।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत द्रौपदीहरणपर्व में कोटिकास्य का प्रश्नविषयक दो सौ पैसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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