महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 108 श्लोक 1-25

अष्टाधिकशततम (108) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टाधिकशततम अध्याय: श्लोक का हिन्दी अनुवाद
दसवें दिन उभय पक्ष की सेना का रण के लिये प्रस्थान तथा भीष्म और शिखण्डी का समागम एवं अर्जुन का शिखण्डी को भीष्म का वध करने के लिये उत्साहित करना

धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! शिखण्डी ने युद्ध में गंगानन्दन भीष्म पर किस प्रकार आक्रमण किया और भीष्म भी पाण्डवों पर किस प्रकार चढ़ाई की? यह सब मुझे बताओ। संजय ने कहा- राजन! तदनन्तर सूर्योदय होने पर रणभेरियाँ बज उठी, मृदंग और ढोल पीटे जाने लगे, दही के समान श्वेतवर्ण वाले शंख सब ओर बजाये जाने लगे। उस समय समस्त पाण्डव शिखण्डी को आगे करके युद्ध के लिये शिविर से बाहर निकले। महाराज! प्रजानाथ! उस दिन शिखण्डी समस्त शत्रुओं का संहार करने वाले व्यूह का निर्माण करके स्वयं सब सेना के सामने खड़ा हुआ। उस समय भीमसेन और अर्जुन शिखण्डी के रथ के पहियों के रक्षक बन गये। द्रौपदी के पाँचों पुत्र और पराक्रमी सुभद्राकुमार अभिमन्यु ने उसके पृष्ठभाग की रक्षा का कार्य सँभाला। सात्यकि और चेकितान भी उन्हीं के साथ थे। पांचाल वीरों से सुरक्षित महारथी धृष्टद्युम्न उन सबके पीछे रहकर सबकी रक्षा करते रहे।

भरतश्रेष्ठ! तदन्तर राजा युधिष्ठिर नकुल-सहदेव के साथ अपने सिंहानाद से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित करते हुए युद्ध के लिये चले। उनके पीछे अपनी सेना के साथ राजा विराट चलने लगे। महाबाहो! विराट के पीछे द्रुपद ने धावा किया। भारत! इसके बाद पाँचों भाई केकय तथा पराक्रमी धृष्टकेतु- ये पाण्डव सेना के जघनभाग की रक्षा करने लगे। इस प्रकार पाण्डवों ने अपनी विशाल सेना के व्यूह का निर्माण करके संग्राम में अपने जीवन का मोह छोड़कर आपकी सेना पर धावा किया। राजन! इसी प्रकार कौरवों ने भी महारथी भीष्म को सब सेनाओं के आगे करके पाण्डवों पर चढ़ाई की। दुर्धर्ष वीर शान्तनुनन्दन भीष्म आपके महाबली पुत्रों से सुरक्षित हो पाण्डवों की सेना की ओर बढे़। उनके पीछे महाधनुर्धर द्रोणाचार्य और महाबली अश्वत्थामा चले। इन दोनों के पीछे हाथियों की विशाल सेना घिरे हुए राजा भगदत्त चले। कृपाचार्य और कृतवर्मा ने भगदत्त का अनुसरण किया। तत्पश्चात बलवान काम्बोजराज सुदक्षिण, मगधदेशीय जयत्सेन तथा सुबलपुत्र बृहद्बल चले। भारत! इसी प्रकार सुशर्मा आदि अन्य महाधनुर्धर राजाओं ने आपकी सेना के जघनभाग की रक्षा का कार्य सँभाला। शान्तनुनन्दन भीष्म युद्ध में प्रतिदिन असुर, पिशाच तथा राक्षस व्यूहों का निर्माण किया करते थे। भारत! (उस दिन भी व्यूह-रचना के बाद) आपके और पाण्डवों की सेना में युद्ध आरम्भ हुआ। राजन! परस्पर घातक प्रहार करने वाले उन वीरों का युद्ध यमराज के राज्य की वृद्धि करने वाला था।

अर्जुन आदि कुन्तीकुमारों ने शिखण्डी को आगे करके युद्ध में नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए वहाँ भीष्म पर चढ़ाई की। भारत! वहाँ भीमसेन के द्वारा बाणों से ताड़ित हुए आपके सैनिक खून से लथपथ होकर परलोकगामी होने लगे। नकुल, सहदेव और महारथी सात्यकि ने आपकी सेना पर धावा करके उसे बलपूर्वक पीड़ित किया। भरतश्रेष्ठ! आपके सैनिक समरभूमि में मारे जाने लगे। वे पाण्डवों की विषाल सेना को रोक न सके। उन महारथी वीरों द्वारा सब ओर से मारी और खदेड़ी जाती हुई आपकी सेना सब दिशाओं में भाग खड़ी हुई। भरतश्रेष्ठ! पाण्डवों और सृंजयों के तीखे बाणों से घायल होने वाले आपके सैनिकों को कोई रक्षक नहीं मिलता था। धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! कुन्तीकुमारों के द्वारा अपनी सेना को पीड़ित हुई देख युद्ध में क्रुद्ध हुए पराक्रमी भीष्म ने क्या किया? यह मुझे बताओ। अनघ! शत्रुओं को संताप देने वाले वीरवर भीष्म ने युद्धस्थल में सोमकों का संहार करते हुए उस समय पाण्डवों पर किस प्रकार आक्रमण किया? वह सब भी मुझे बताओ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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