सप्तम (7) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
राजन! आप चिरंजीवी हों। सामने आये हुए शत्रुओं का संहार कर डालें। आपके बाहुबल को पाकर धृतराष्ट्र के सभी महाबली पुत्र शत्रुओं का नाश करके सारी पृथ्वी का शासन करें। आप रणभूमि में सम्पूर्ण देवताओं, असुरों और मनुष्यों को जीत सकते हैं। फिर यहाँ मरणधर्मा सृंजयों और सोमकों पर विजय पाना कौन बड़ी बात है? उनके द्वारा इस प्रकार प्रशंसित होने पर बलवान वीर मद्रराज शल्य को वह हर्ष प्राप्त हुआ, जो अकृतात्मा (युद्ध की शिक्षा रहित) पुरुषों के लिये दुलर्भ है। शल्य ने कहा- राजन! आज मैं रणभूमि में पाण्डवों सहित समस्त पांचालों को मार डालूँगा या स्वयं ही मारा जाकर स्वर्गलोक में जा पहुँचूँगा। आज सब लोग मुझे रणभूमि में निर्भय विचरते देखें, आज समस्त पाण्डव, श्रीकृष्ण, सात्यकि, पांचाल और चेदि देश के योद्धा, द्रौपदी के सभी पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा समस्त प्रभद्रकगण मेरा पराक्रम तथा मेरे धनुष का महान बल अपनी आँखों से देख लें। आज कुन्ती के सभी पुत्र तथा चारणों सहित सिद्धगण भी युद्ध में मेरी फुर्ती, अस्त्र-बल और बाहुबल देखें। मेरी दोनों भुजाओं में जैसा बल है तथा अस्त्रों का मुझे जैसा ज्ञान है, उसके अनुसार आज मेरा पराक्रम देखकर पाण्डव महारथी उसके प्रतीकार में तत्पर हो नाना प्रकार के कार्यों के लिये सचेष्ट हों। कुरुनन्दन! आज मैं पाण्डवों की सेनाओं को चारों ओर भगा दूँगा। प्रभो! युद्धस्थल में तुम्हारा प्रिय करने के लिये आज मैं द्रोणाचार्य, भीष्म और सूतपुत्र कर्ण से भी बढ़कर पराक्रम दिखाता और जूझता हुआ रणभूमि में सब ओर विचरण करूँगा। संजय कहते हैं- मानद! भरतनन्दन! इस प्रकार आपकी सेनाओं में राजा शल्य का अभिषेक होने पर समस्त योद्धाओं को कर्ण के मारे जाने का थोड़ा-सा भी दुःख नहीं रह गया। वे सब-के-सब प्रसन्नचित्त होकर हर्ष से भर गये और यह मानने लगे कि कुन्ती के पुत्र मद्रराज शल्य के वश में पड़कर अवश्य ही मारे जायँगे। भरतश्रेष्ठ! आपकी सेना महान हर्ष पाकर उस रात में वहीं रही और सो गयी। उसके मन में बड़ा उत्साह था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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