महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 1-11

एकोननवतितम (89) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद


कर्ण और अर्जुन भयंकर युद्ध और कौरव वीरों का पलायन


संजय कहते हैं- राजन! तदनन्तर आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप जब वहाँ शंख और भेरियों की गम्भीर ध्वनि होने लगी, उस समय वहाँ श्वेत घोड़ों वाले दोनों नरश्रेष्ठ वैकर्तन कर्ण और अर्जुन युद्ध के लिये एक दूसरे की ओर बढे़। ये दोनों यशस्वी वीर उस समय दो विषधर सर्पों के समान लंबी साँस खींचकर मानो अपने भूखों से धूमरहित अग्नि ने सदृश वैर भाव प्रकट कर रहे थे। वे घी की आहुति से प्रज्वलित हुई दो अग्नियों की भाँति युद्धभूमि में देदीप्यमान होने लगे। जैसे मद की धारा बहाने वाले हिमाचल प्रदेश के बड़े-बड़े़ दाँतों वाले दो हाथी किसी हथिनी के लिये लड़ रहे हों, उसी प्रकार भयंकर पराक्रमी वीर अर्जुन और कर्ण युद्ध के लिये एक-दूसरे के समान आये।

जिनके शिखर, वृक्ष, लता-गुल्म और औषधि सभी विशाल एवं बढे़ हुए हों तथा जो नाना प्रकार के बड़े-बड़े़ झरनों के उद्रमस्थान हों, ऐसे दो पर्वतों के समान वे महाबली कर्ण और अर्जुन आगे बढ़कर अपने महान अस्त्रों द्वारा एक-दूसरे आघात करने लगे। उन दोनों का वह संग्राम वैसा ही महान था, जैसा कि पूर्वकाल में इन्द्र और बलि का युद्ध हुआ था। बाणों के आघात से उन दोनों के शरीर, सारथि और घोडे़ क्षत-विक्षत हो गये थे और वहाँ कटु रक्तरूपी जल का प्रवाह बह रहा था। वह युद्ध दूसरों के लिये अत्यन्त दुःसह था। जैसे प्रचुर पद्य, उत्पल, मत्स्य और कच्छपों से युक्त तथा पक्षिसमुहों से आवृत दो अत्यन्त निकटवर्ती विशाल सरोवर वायु से संचालित हो परस्पर मिल जायँ, उसी प्रकार ध्वजों से सुशोभित उनके वे दोनों रथ एक दूसरे से भिड़ गये थे। वे दोनों वीर इन्द्र के समान पराक्रमी और उन्हीं के सदृश महारथी थे। इन्द्र के वज्रतुल्य बाणों से इन्द्र और वृत्रासुर के समान वे एक दूसरे को चोट पहुँचाने लगे। विचित्र कवच, आभूषण, वस्त्र और आयुध धारण करने वाली, हाथी, घोडे़, रथ और पैदलों सहित उभय पक्ष की चतुरंगिणी सेनाएँ अर्जुन और कर्ण के उस युद्ध में भय के कारण आश्चर्यजनक-रूप से काँपने लगीं तथा आकाशवर्ती प्राणी भी भय से थर्रा उठे। जैसे मतवाला हाथी किसी हाथी पर आक्रमण करता है, उसी प्रकार अर्जुन जब कर्ण के वध की इच्छा से उस पर धावा करने लगे, उस समय दर्शकों ने आनंदित हो सिंहनाद करते हुए अपने हाथ ऊपर उठा दिये और अगुलियों में वस्त्र लेकर उन्हें हिलाना आरम्भ किया।

जब महासमर में अपराह्न के समय पर्वत पर जाने वाले मेघ के समान सूतपुत्र कर्ण ने अर्जुन पर आक्रमण किया, उस समय कौरवों और सोमकों का महान कोलाहल सब ओर प्रकट होने लगा। उसी समय उन दोनों रथों का संघर्ष आरम्भ हुआ। उस महायुद्ध में रक्त और मांस की कीच जम गयी थी। उस समय सोमकों ने आगे बढ़कर वहाँ कुन्तीकुमार से पुकार-पुकार कर कहा-अर्जुन! तुम कर्ण को मार डालो। अब देर करने की आवश्यकता नहीं है। कर्ण के मस्तक और दुर्योधन की राज्य प्राप्ति की आशा दोनों को एक साथ ही काट डालो। इसी प्रकार हमारे पक्ष के बहुत से योद्धा कर्ण को प्रेरित करते हुए बोले-कर्ण! आगे बढ़ो, आगे बढ़ो। अपने पैने बाणों से अर्जुन को मार डालो, जिससे कुन्ती के सभी पुत्र पुनः दीर्घकाल के लिये वन में चले जायँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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