महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 20 श्लोक 1-13

विंश (20) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवतद्गीता पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


दोनों सेनाओं की स्थिति तथा कौरव सेना का अभियान


धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! सूर्योदय के समय किस पक्ष के योद्धा युद्ध की इच्‍छा से अधिक हर्ष का अनुभव करते हुए जान पड़ते थे? भीष्म के नेतृत्‍व में निकट आये हुए मेरे सैनिक अथवा भीमसेन की अध्‍यक्षता में आने वाले पाण्‍डव सैनिक! उस समय कौन अधिक प्रसन्न थे। चन्‍द्रमा, सूर्य और वायु किनके प्रतिकूल थे? किनकी सेना की ओर देखकर हिंसक जंतु भयंकर शब्‍द करते थे? किस पक्ष के नवयुवकों के मुख की कांति प्रसन्‍न थी? ये सब बातें तुम मुझे ठीक-ठीक बताओ।

संजय बोले- नरेन्‍द्र! दोनों ओर की सेनाएं समान रूप से आगे बढ़ रही थीं। दोनों ओर के व्‍यूह में खड़े हुए सैनिक हर्ष से उल्‍लसित थे। दोनों ही सेनाएं वनश्रेणियों के समान आश्चर्यरूप प्र‍तीत होती थीं और दोनों ही हाथी, रथ एवं घोड़ों से भरी हुई थीं। भारत! दोनों ओर की सेनाएं विशाल, भयंकर और दु:सह थीं, मानो विधाता ने दोनों सेनाओं को स्‍वर्ग की प्राप्ति के लिये ही रचा था। दोनों में ही सत्‍पुरुष भरे हुए थे। आपके पुत्र कौरवों का मुख पश्चिम दिशा की ओर था और कुंती के पुत्र उनसे युद्ध करने के लिये पूर्वाभिमुख खड़े थे। कौरव सेना दैत्‍यराज की सेना के समान जान पड़ती थी और पाण्‍डव-वाहिनी देवराज इन्द्र की सेना के तुल्‍य प्र‍तीत होती थी। पाण्‍डव सेना के पीछे की ओर से हवा चल रही थी और आपके पुत्रों की ओर देखकर हिसंक जंतु बोल रहे थे।

आपके पुत्र की सेना में जो हाथी थे, वे पाण्‍डव पक्ष के गजराजों के मदों की तीव्र गन्‍ध नहीं सहन कर पाते थे। दुर्योधन कमल के समान कांति वाले मदस्रावी गजराज पर बैठकर कौरव सेना के मध्‍यभाग में खड़ा था। उसके हाथी पर सोने का हौदा कसा हुआ था और पीठ पर सोने की जाली बिछी हुई थी। उस समय बंदी और मागधजन उसकी स्‍तुति कर रहे थे। उसके मस्‍तक पर चन्‍द्रमा के समान कांतिमान् श्‍वेत छत्र तना हुआ था और कण्‍ठ में सोने की माला सुशोभित हो रही थी। गान्‍धारराज शकुनि गान्‍धारदेश के पर्वतीय योद्धाओं के साथ आकर दुर्योधन को सब ओर से घेरकर चल रहा था। हमारी सम्‍पूर्ण सेना के आगे बूढ़े पितामह भीष्‍म थे। उनके सिर पर श्‍वेत रंग की पगड़ी थी और श्‍वेत वर्ण का ही छत्र तना हुआ था।

उनके धनुष और खड्ग भी श्‍वेत ही थे। वे श्‍वेत शैल के समान प्रकाशित होने वाले श्‍वेत घोड़ों और श्‍वेत ध्‍वज से सुशोभित हो रहे थे। उनकी सेना में आपके सभी पुत्र, बाह्लीक सेना का एक अंश, शल और अम्‍बष्ठ, सौवीर, सिंधु तथा वञ्चनद देश के शूरवीर क्षत्रिय विद्यमान थे। उनके पीछे प्राय: समस्‍त राजाओं के गुरु, उदार हृदय वाले महामना द्रोणाचार्य हाथ में धनुष लिये लाल घोड़ों से जुते हुए सुवर्ण-मय रथ में बैठकर भूमिपाल की भाँति युद्ध के लिये जा रहे थे। वृद्धक्षत्र का पुत्र जयद्रथ, भूरिश्रवा, पुरूमित्र, जय, शाल्‍व और मत्‍स्‍यदेशीय क्षत्रिय तथा सब भाई केकय राजकुमार युद्ध की इच्‍छा से हाथियों के समूहों को साथ ले सम्‍पूर्ण सेना के मध्‍य भाग में स्थित थे। महान् धनुर्धर और विचित्र रीति से युद्ध करने वाले गोतमवंशीय महामना कृपाचार्य गुरुतर भार ग्रहण करके शक, किरात, यवन तथा पल्‍लव सैनिकों के साथ कौरवसेना के बांये भाग में होकर चल रहे थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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