षट्सप्ततितम (76) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
धृतराष्ट्र की चिन्ता
हमारी इस सेना को धनुर्वेद का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त है। इसके सैनिकों ने व्यायाम (अस्त्र-शस्त्रों के अभ्यास) में भी अधिक परिश्रम किया है। ये शस्त्रग्रहण से सम्बन्ध रखने वाली सभी विद्याओं में पारंगत हैं। ये हाथी, घोड़े आदि सवारियों पर चढ़ने, उतरने, आगे बढ़ने, बीच में ही कूद पड़ने, अच्छी तरह प्रहार करने, चढ़ाई करने और पीछे हटने में भी प्रवीण हैं। हाथी, घोड़े, रथ आदि की सवारियों द्वारा रणयात्रा करने में इस सेना की अनेक प्रकार परीक्षा की जा चुकी है। परीक्षा करके प्रत्येक सैनिक को उसकी योग्यता के अनुकूल यथोचित वेतन दे दिया गया है। इनमें से किसी को मित्रों की गोष्ठी से लाकर, सामान्य उपकार करके, भाई-बन्धु होने के कारण, सौहार्दवश अथवा बलप्रयोग करके सेना में सम्मलित नहीं किया गया है। जो कुलीन नहीं हैं, ऐसे लोगों का भी इस सेना में संग्रह नहीं हुआ है। हमारी सेना में जो लोग हैं, वे सब समृद्धिशाली और श्रेष्ठ हैं। उनके सगे-सम्बन्धी, भाई-बन्धु भी संतुष्ट है। इन सब पर हमारी ओर से विशेष उपकारक किया गया है। ये सभी यशस्वी और मनस्वी हैं। तात! जिनके कार्य और व्यवहार को कई बार देखा गया है, ऐसे मुख्य-मुख्य स्वजनों द्वारा, जो लोकपाल के समान पराक्रमी हैं, इस सेना का पालन-पोषण होता है। यह सम्पूर्ण जगत में विख्यात है। जो अपनी वीरता के लिये भूमण्डल में विख्यात तथा लोक में सम्मानित हैं, ऐसे बहुत से क्षत्रिय अपनी इच्छा से ही सेना और सेवकों के साथ हमारे पास आये हैं, उनके द्वारा यह कौरव सेना सुरक्षित है। हमारी यह सेना महासागर के समान सब और से परिपूर्ण है। इसमें बिना पंख के ही पक्षियों के समान तीव्र गति से चलने वाले रथ और हाथी इस प्रकार आकर मिलते हैं, जैसे समुद्र में सब ओर से नदियाँ आकर गिरती हैं। नाना प्रकार के योद्धा ही इस सैन्य सागर के जल हैं, वाहन ही उसमें उठती हुई छोटी-बड़ी तरंगें हैं। इसमें क्षेपणी, खड्ग, गदा, शक्ति, बाण और प्राप्त आदि अस्त्र-शस्त्र जल-जन्तुओं के समान भरे पड़े हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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