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महाभारत: द्रोण पर्व: चतुश्रत्वारिश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
अभिमन्यु का पराक्रम और उसके द्वारा वसातीय आदि अनेक योद्धाओं का वध
संजय कहते हैं–राजन! विजय की अभिलाषा रखने वाले पाण्डवों को जब सिंधुराज जयद्रथ ने रोक दिया, उस समय आपके सैनिकों का शत्रुओं के साथ बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। (1)
- तदनन्तर सत्यप्रतिज्ञ दुर्घर्ष और तेजस्वी वीर अभिमन्यु ने आपकी सेना के भीतर घुसकर इस प्रकार तहलका मचा दिया, जैसे बड़ा भारी मगर समुद्र में हलचल पैदा कर देता है। (2)
- इस प्रकार बाणों की वर्षा से कौरव सेना में हलचल मचाते हुए शत्रुदमन सुभद्राकुमार पर आपकी सेना के प्रधान-प्रधान महारथियों ने एक-साथ आक्रमण किया। (3)
- उस समय अति तेजस्वी कौरव योद्धा परस्पर सटे हुए बाणों की वर्षा कर रहे थे। उनके साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध होने लगा। (4)
- यद्यपि शत्रुओं ने अपने रथसमूह के द्वारा अर्जुनकुमार अभिमन्यु को सब ओर से घेर लिया था, तो भी उसने वृषसेन के सारथि को घायल करके उसके धनुष को भी काट डाला। (5)
- तब बलवान वृषसेन अपने सीधे जाने वाले बाणों द्वारा अभिमन्यु के घोड़ों को बींधने लगा। इससे उसके घोड़े हवा के समान वेग से भाग चले। इस प्रकार उन अश्वों द्वारा यह रणभूमि में दूर पहुँचा दिया गया। (6)
- अभिमन्यु के कार्य में इस प्रकार विध्न आ जाने से वृषसेन का सारथि अपने रथ को वहाँ से दूर हटा ले गया। इससे वहाँ जुटे हुए रथियों के समुदाय हर्ष में भरकर 'बहुत अच्छा बहुत अच्छा' कहते हुए कोलाहल करने लगे। (7)
- तदनन्तर सिंह के समान अत्यन्त क्रोध में भरकर अपने बाणों द्वारा शत्रुओं को मथते हुए अभिमन्यु को समीप आते देख वसातीय तुरंत वहाँ उपस्थित हो उसका सामना करने के लिये गया। (8)
- उसने अभिमन्यु पर सुवर्णमय पंख वाले साठ बाण बरसाये और कहा–'अब तू मेरे जीते-जी इस युद्ध में जीवित नहीं छूट सकेगा,।' (9)
- तब अभिमन्यु ने लोहमय कवच धारण करने वाले वसातीय को दूर तक के लक्ष्य को मार गिराने वाले बाण द्वारा उसकी छाती में चोट पहुँचायी, जिससे वह प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। (10)
- राजन! वसातीय को मारा गया देख क्रोध में भरे हुए क्षत्रिय शिरोमणि वीरों ने आपके पौत्र अभिमन्यु को मार डालने की इच्छा से उस समय चारों ओर-से घेर लिया। (11)
- वे अपने नाना प्रकार के धनुषों की बारंबार टंकार करने लगे। सुभद्राकुमार का शत्रुओं के साथ वह बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। (12)
- उस समय अर्जुनकुमार ने कुपित होकर उनके धनुष, बाण, शरीर तथा हार और कुण्डलों से युक्त मस्तकों के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। (13)
- सोने के आभूषणों से विभूषित उनकी भुजाएँ खड्ग, दस्ताने, पट्टिश और फरसों सहित कटी दिखायी देने लगीं। (14)
- काटकर गिराये हुए हार, आभूषण, वस्त्र, विशाल भुजा, कवच, ढाल, मनोहर मुकुट, छत्र, चँवर, आवश्यक सामग्री, रथ की बैठक, ईषादण्ड, बन्धुर, चूर-चूर हुई धुरी, टूटे हुए पहिये, टूक-टूक हुए जूए, अनुकर्ष, पताका, सारथि, अश्व, टूटे हुए रथ और मरे हुए हाथियों से वहाँ की सारी पृथ्वी आच्छादित हो गयी थी। (15-17)
- विजय की अभिलाषा रखने वाले विभिन्न जनपदों के स्वामी क्षत्रिय वीर उस युद्ध में मारे गये। उनकी लाशों से पटी हुई पृथ्वी बड़ी भयानक जान पड़ती थी। (18)
- उस रणक्षेत्र में कुपित होकर सम्पूर्ण दिशा-विदिशाओं में विचरते हुए अभिमन्यु का रूप अदृश्य हो गया था। (19)
- उसके कवच, आभूषण, धनुष और बाण के जो-जो अवयव सुवर्णमय थे, केवल उन्हीं को हम दूर से देख पाते थे। (20)
- अभिमन्यु जिस समय बाणों द्वारा योद्धाओं के प्राण ले रहा था और व्यूह के मध्यभाग में सूर्य के समान खड़ा था, उस समय कोई वीर उसकी ओर आँख उठाकर देखने का साहस नहीं कर पाता था। (21)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत अभिमन्युवधपर्व में अभिमन्यु का पराक्रम विषयक चौवालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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