महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 81 श्लोक 1-20

एकाशीतितम (81) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासनपर्व: एकाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


गौओं का माहात्म्‍य तथा व्‍यास जी के द्वारा शुकदेव से गौओं की, गोलोक की और गोदान की महत्ता का वर्णन

युधिष्ठिर ने कहा- पितामह! संसार में जो वस्तु पवित्रों में भी पवित्र तथा लोक में पवित्र कहकर अनुमोदित एवं परम पावन हो, उसका मुझसे वर्णन कीजिये।

भीष्म जी ने कहा- राजन! गौएँ महान प्रयोजन सिद्ध करने वाली तथा परम पवित्र हैं। ये मनुष्यों को तारने वाली हैं और अपने दूध-घी से प्रजावर्ग के जीवन की रक्षा करती हैं। भरतश्रेष्ठ! गौओं से बढ़कर परम पवित्र दूसरी कोई वस्तु नहीं है। ये पुण्यजनक, पवित्र तथा तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ हैं। गौएँ देवताओं से भी ऊपर के लोकों में निवास करती हैं। जो मनीषी पुरुष इनका दान करते हैं, वे अपने-आपको तारते हैं और स्वर्ग में जाते हैं। युवनाश्‍व के पुत्र राजा मान्धाता, सोमवंशी नहुष और ययाति- ये सदा लाखों गौओं का दान किया करते थे; इससे वह उन उत्तम स्थानों को प्राप्त हुए हैं, जो देवताओं के लिये भी अत्यन्त दुर्लभ हैं।

निष्पाप नरेश! इस विषय में तुम्हें एक पुराना वृत्तान्त सुना रहा हूँ। एक समय की बात है, परम बुद्धिमान शुकदेव जी ने नित्य-कर्म का अनुष्ठान करके पवित्र एवं शुद्धचित्त होकर अपने पिता-ऋषियों में उत्तम श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास को, जो लोक के भूत और भविष्य को प्रत्यक्ष देखने वाले हैं, प्रणाम करके पूछा- 'पिताजी! सम्पूर्ण यज्ञों में कौन-सा यज्ञ सबसे श्रेष्ठ देखा जाता है? प्रभो! मनीषी पुरुष कौन-सा कर्म करके उत्तम स्थान को प्राप्त होते हैं तथा किस पवित्र कार्य के द्वारा देवता स्वर्गलोक का उपभोग करते हैं? यज्ञ का यज्ञत्व क्या है? यज्ञ किसमें प्रतिष्ठित है? देवताओं के लिये कौन-सी वस्तु उत्तम है? इससे श्रेष्ठ यज्ञ क्या है? पिताजी! पवित्रों में पवित्र वस्तु क्या है? इन सारी बातों का मुझसे वर्णन कीजिये।'

भरतश्रेष्ठ! पुत्र शुकदेव का यह वचन सुनकर परम धर्मज्ञ व्यास ने उससे सब बातें ठीक-ठीक बतायीं। व्यास जी बोले- बेटा! गौएँ सम्पूर्ण भूतों की प्रतिष्ठा हैं। गौएँ परम आश्रय हैं। गौएँ पुण्यमयी एवं पवित्र होती हैं तथा गोधन सबको पवित्र करने वाला है। हमने सुना है कि गौएँ पहले बिना सींगों की ही थीं। उन्होंने सींग के लिये अविनाशी भगवान ब्रह्मा की उपासना की। भगवान ब्रह्मा जी ने गौओं को प्रायोपवेशन (आमरण उपवास) करते देख उन गौओं में से प्रत्येक को उनकी अभीष्ट वस्तु दी। बेटा! वरदान मिलने के पश्चात गौओं के सींग प्रकट हो गये। जिसके मन में जैसे सींग की इच्छा थी, उसके वैसे ही हो गये। नाना प्रकार के रूप-रंग और सींग से उत्पन्न हुई उन गौओं की बड़ी शोभा होने लगी। ब्रह्मा जी का वरदान पाकर गौएँ मंगलमयी, हव्य-कव्य प्रदान करने वाली, पुण्यजनक, पवित्र, सौभाग्यवती तथा दिव्य अंगों एवं लक्षणों से सम्पन्न हुईं। गौएँ दिव्य एवं महान तेज हैं। उनके दान की प्रशंसा की जाती है। जो सत्पुरुष मात्सर्य का त्याग करके गौओं का दान करते हैं, वे पुण्यात्मा कहे गये हैं। वे सम्पूर्ण दानों के दाता माने गये हैं। निष्पाप शुकदेव! उन्हें पुण्यमय गोलोक की प्राप्ति होती है।

द्विजश्रेष्ठ! गोलोक के सभी वृक्ष मधुर एवं सुस्वादु फल देने वाले हैं। वे दिव्य फल-फूलों से सम्पन्न होते हैं। उन वृक्षों के पुष्प दिव्य एवं मनोहर गंध से युक्त होते हैं। वहाँ की भूमि मणिमयी है। वहाँ बालू का कांचनचूर्ण रूप है। उस भूमि का स्पर्श सभी ऋतुओं में सुखद होता है। वहाँ धूल और कीचड़ नाम भी नहीं है। वह भूमि सवर्था मंगलमयी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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