एकोनषष्टयधिकशततम (159) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनषष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
संजय कहते हैं- राजन! इस प्रकार वेगपूर्वक उठे हुए अश्वत्थामा को महातेजस्वी स्वयं राजा दुर्योधन तथा मनुष्यों में श्रेष्ठ कृपाचार्य ने रोका। कर्ण बोला- कुरुश्रेष्ठ! यह दुर्बुद्धि एवं नीच ब्राह्मण बड़ा शूरवीर बनता है और युद्ध की श्लाघा रखता है। तुम इसे छोड़ दो। आज यह मेरे पराक्रम का सामना करे। अश्वत्थामा ने कहा- दुर्बुद्धि सूतपुत्र! हम लोग तेरे इस अपराध को क्षमा करते हैं। तेरे इस बढ़े हुए घमण्ड का नाश अर्जुन करेंगे। दुर्योधन बोला- दूसरों को मानदेने वाले (भाई) अश्वत्थामा! प्रसन्न होओ। तुम्हें क्षमा करना चाहिये। सूतपुत्र कर्ण पर तुम्हें किसी प्रकार भी क्रोध करना उचित नहीं है।। द्विजश्रेष्ठ! तुम पर, कर्ण पर तथा कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, मद्रराज शल्य और शकुनि पर महान कार्यभार रखा गया है, तुम प्रसन्न होओ। ब्रह्मन! ये सामने राधा पुत्र कर्ण के साथ युद्ध की अभिलाषा रखकर समस्त पाण्डव-सैनिक सब ओर से ललकारते आ रहे हैं।। संजय कहते हैं- महाराज! राजा दुर्योधन के मनाने पर क्रोध के वेग से युक्त महामना अश्वत्थामा शान्त एवं प्रसन्न हो गया। राजेन्द्र! तत्पश्चात सौम्य स्वभाव के कारण शीघ्रही मृदुता आ जाने से महामना कृपाचार्य भी शान्त हो गये और इस प्रकार बाले। कृपाचार्य ने कहा- दुर्बुद्धि सूतपुत्र! हम लोग तो तेरे इस अपराध को क्षमा कर दते हैं, परंतु अर्जुन तेरे इस बढे़ हुए घमंड का अवश्य नाश करेंगे। संजय कहते हैं- राजन! तदनन्तर वे यशस्वी पाण्डव और पाञ्चाल एक साथ होकर गर्जन-तर्जन करते हुए चारों ओर से कर्ण पर चढ़ आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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