चतुर्विंश (24) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: चतुर्विंश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
ऐसा कहकर सूतपुत्र कर्ण ने पाण्डु कुमार नकुल पर तुरंत ही प्रहार किया। उन्हें युद्धस्थल में तिहत्तर बाणों से बींध डाला। भारत! सूतपुत्र के द्वारा घायल होकर नकुल ने उसे भी विषधर सर्पों के समान अस्सी बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया। तब महाधनुर्धर कर्ण ने शिला पर तेज किये हुए स्वर्णमय पंख वाले बाणों से नकुल के धनुष को काटकर उन्हें तीस बाणों से पीड़ित कर दिया। जैसे विषधर नाग धरती फोड़कर जल पी लेते हैं, उसी प्रकार उन बाणों ने नकुल का कवच छिन्न-भिन्न करके युद्धस्थल में उनका रक्त पी लिया। तत्पश्चात नकुल ने सोने की पीठ वाला दूसरा दुर्जय धनुष हाथ में लेकर कर्ण को सत्तर और उसके सारथि को तीन बाणों से घायल कर दिया। महाराज! इसके बाद शत्रुवीरों का संहार करने वाले नकुल ने कुपित होकर एक अत्यन्त तीखे क्षुरप्र से कर्ण का धनुष काट दिया। धनुष कट जाने पर सम्पूर्ण लोकों के विख्यात महारथी कर्ण को वीर नकुल ने हँसते-हँसते तीन सौ बाण मारे। मान्यवर! पाण्डु पुत्र नकुल के द्वारा कर्ण को इस तरह पीड़ित हुआ देख देवताओं सहित सम्पूर्ण रथियों को महान आश्चर्य हुआ। तब वैकर्तन कर्ण ने दूसरा धनुष लेकर नकुल के गले की हँसली पर पाँच बाण मारे। वहाँ धँसे हुए उन बाणों से माद्री कुमार नकुल उसी प्रकार सुशोभित हुए, जैसे सम्पूर्ण जगत में प्रभा बिखेरने वाले भगवान सूर्य अपनी किरणों से प्रकाशित होते हैं। माननीय नरेश! तदनन्तर नकुल ने कर्ण को सात बाणों से घायल करके उसके धनुष का एक कोना पुनः काट डाला। तब कर्ण ने समरांगण में दूसरा अत्यन्त वेगशाली धनुष लेकर नकुल के चारों ओर सम्पूर्ण दिशाओं को बाणों से आच्छादित कर दिया। कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा सहसा आच्छादित होते हुए महारथी नकुल ने तुरंत ही उसके बाणों को अपने बाणों द्वारा ही काट गिराया। तत्पश्चात आकाश में बाणों का जाल-सा बिछा हुआ दिखाई देने लगा, मानो वहाँ जुगनुओं के समूह उड़ रहे हों। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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