नवम (9) अध्याय: सौप्तिक पर्व
महाभारत: सौप्तिक पर्व:नवम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
संजय कहते हैं- राजन! वे तीनों महारथी समस्त पांचालों और द्रौपदी के सभी पुत्रों का वध करके एक साथ उस स्थान में आये, जहाँ राजा दुर्योधन मारा गया था। वहाँ जाकर उन्होंने राजा दुर्योधन को देखा, उसकी कुछ-कुछ साँस चल रही थी। फिर वे रथों से कूद पड़े और आपके पुत्र के पास जा उसे सब ओर से घेरकर बैठ गये। राजेन्द्र! उन्होंने देखा कि राजा की जाँघें टूट गयी हैं। ये बड़े कष्ट से प्राण धारण करते हैं। इनकी चेतना लुप्त-सी हो गयी है और ये अपने मुँह से पृथ्वी पर खून उगल रहे हैं। इन्हें चट कर जाने के लिये बहुत-से भयंकर दिखायी देने वाले हिंसक जीव और कुत्ते चारों ओर से घेरकर आसपास ही खड़े हैं। ये अपने को खा जाने की इच्छा रखने वाले उन हिंसक जन्तुओं को बड़ी कठिनाई से रोकते हैं। इन्हें बड़ी भारी पीड़ा हो रही है, जिसके कारण ये पृथ्वी पर पड़े-पड़े छटपटा रहे हैं। दुर्योधन को इस प्रकार खून से लथपथ हो पृथ्वी पर पड़ा देख मरने से बचे हुए वे तीनों वीर अश्वत्थामा, कृपाचार्य और सात्वतवंशी कृतवर्मा शोक से व्याकुल हो उसे तीन ओर से घेरकर बैठ गये। वे तीनों महारथी वीर खून से रंग गये थे और लंबी साँसे खींच रहे थे। उनसे घिरा हुआ राजा दुर्योधन तीन अग्नियों से घिरी हुई वेदी के समान सुशोभित हो रहा था। राजा को इस प्रकार अयोग्य अवस्था में सोया देख वे तीनों असह्य दु:ख से पीड़ित हो रोने लगे। तत्पश्चात रणभूमि में सोये हुए राजा दुर्योधन के मुख से बहते हुए रक्त को हाथों से पोंछकर वे तीनों दीन वाणी में विलाप करने लगे। कृपाचार्य बोले- हाय! विधाता के लिये कुछ भी करना कठिन नहीं है। जो कभी ग्यारह अक्षौहिणी सेना के स्वामी थे, वे ही ये राजा दुर्योधन यहाँ मारे जाकर खून से लथपथ हुए पड़े हैं। देखो, सुवर्ण के समान कान्ति वाले इन गदा प्रेमी नरेश के समीप यह सुवर्णभूषित गदा पृथ्वी पर पड़ी है। यह गदा इन शूरवीर भूपाल का साथ किसी भी युद्ध में नहीं छोड़ती थी और आज स्वर्गलोक में जाते समय भी यशस्वी नरेश का साथ नहीं छोड़ रही है। देखो, यह सुवर्णभूषित गदा इन वीर भूपाल के साथ रणशय्या पर उसी प्रकार सो रही है, जैसे महल में प्रेम रखने वाली पत्नि इनके साथ सोया करती थी। जो ये शत्रुसंतापी नरेश सभी मूर्धाभिषिक्त राजाओं के आगे चला करते थे, वे ही आज मारे जाकर धरती पर पड़े-पड़े धूल फाँक रहे हैं। यह समय का उलट-फेर तो देखो। पूर्वकाल में जिनके द्वारा युद्ध में मारे गये शत्रु भूमि पर सोया करते थे, वे ही ये कुरुराज आज शत्रुओं द्वारा स्वयं मारे जाकर भूमि पर शयन करते हैं। जिनके आगे सैकड़ों राजा भय से सिर झुकाते थे, वे ही आज हिंसक जन्तुओं से घिरे हुए वीर-शय्या पर सो रहे हैं। पहले बहुत-से ब्राह्मण धन की प्राप्ति के लिये जिन नरेश के पास बैठे रहते थे, उन्हीं के समीप आज मांस के लिये मांसाहारी जन्तु बैठे हुए हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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