महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 9 श्लोक 18-36

नवम (9) अध्याय: सौप्तिक पर्व

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महाभारत: सौप्तिक पर्व:नवम अध्याय: श्लोक 18-36 का हिन्दी अनुवाद


संजय कहते हैं- भरतश्रेष्‍ठ! तदनन्तर कुरुकुलभूषण दुर्योधन को रणशय्या पर पड़ा देख अश्वत्‍थामा इस प्रकार करूण विलाप करने लगा- ‘निष्पाप राजसिंह! आपको समस्त धनुर्धरों में श्रेष्ठ कहा जाता था। आप गदायुद्ध में धनाध्यक्ष कुबेर की समानता करने वाले तथा साक्षात संकर्षण के शिष्य थे तो भी भीमसेन ने कैसे आप पर प्रहार करने का अवसर पा लिया? नरेश्वर! आप तो सदा से ही बलवान और गदायुद्ध के विद्वान रहे हैं। फिर उस पापात्मा ने कैसे आपको मार दिया? महाराज! निश्चय ही इस संसार में समय महाबलवान है, तभी तो युद्धस्थल में हम आपको भीमसेन के द्वारा मारा गया देखते हैं। आप तो सम्पूर्ण धर्मों के ज्ञाता थे। आपको उस मूर्ख, नीच और पापी भीमसेन ने किस तरह धोखे से मार डाला? अवश्य ही काल का उल्लघंन करना सर्वथा कठिन है। भीमसेन ने आपको धर्मयुद्ध के लिये बुलाकर रणभूमि में अधर्म के बल से गदा द्वारा आपकी दोनों जाँघें तोड़ डाली। एक तो आप रणभूमि में अधर्मपूर्वक मारे गये। दूसरे भीमसेन ने आपके मस्तक पर लात मारी। इतने पर भी जिन्होंने उस नीच की उपेक्षा की, उसे कोई दण्ड नहीं दिया, उन श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर को धिक्कार है।

आप धोखे से गिराये गये हैं, अतः इस संसार में जब तक प्राणियों की स्थिति रहेगी, तब तक सभी युद्धों में सम्पूर्ण योद्धा भीमसेन की निन्दा ही करेंगे। राजन! पराक्रमी यदुनन्दन बलराम जी आपके विषय में सदा कहा करते थे कि गदायुद्ध की शिक्षा में दुर्योधन की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। प्रभो! भरतनन्दन! ये वृष्णिकुलभूषण बलराम राजाओं की सभा में सदा आपकी प्रशंसा करते हुए कहते थे कि कुरुराज दुर्योधन गदायुद्ध में मेरा शिष्य है। महर्षियों ने युद्ध में शत्रु का सामना करते हुए मारे जाने वाले क्षत्रिय के लिये जो उत्‍तम गति बतायी है, आपने वही गति प्राप्त की है। पुरुषश्रेष्ठ राजा दुर्योधन! मैं तुम्हारे लिये शोक नहीं करता। मुझे तो माता गान्धारी और आपके पिता धृतराष्ट्र के लिये शोक हो रहा है, जिनके सभी पुत्र मार डाले गये हैं। अब वे बेचारे शोकमग्न हो भिखारी बनकर इस भूतल पर भीख माँगते फिरेंगे।

उस वृष्णिवंशी श्रीकृष्ण और खोटी बुद्धि वाले अर्जुन को भी धिक्कार है, जिन्‍होंने अपने को धर्मज्ञ मानते हुए भी आपके अन्यायपूर्वक वध की उपेक्षा की। नरेश्वर! क्या वे समस्त पाण्डव भी निर्लज होकर लोगों के सामने कह सकेंगे कि हमने दुर्योधन को किस प्रकार मारा था? पुरुषप्रवर गान्धारीनन्दन! आप धन्य हैं, क्योंकि युद्ध में प्रायः धर्मपूर्वक शत्रुओं का सामना करते हुए मारे गये हैं। जिनके सभी पुत्र, कुटुम्बी और भाई-बन्धु मारे जा चुके हैं, वे माता गान्धारी तथा प्रज्ञाचक्षु दुर्जय राजा धृतराष्ट्र अब किस दशा को प्राप्त होंगे? मुझको, कृतवर्मा को तथा महारथी कृपाचार्य को भी धिक्कार है कि हम आप जैसे महाराज को आगे करके स्वर्गलोक में नहीं गये। आप हमें सम्पूर्ण मनोवान्छित पदार्थ देते रहे और प्रजा के हित की रक्षा करते रहे। फिर भी हम लोग जो आपका अनुसरण नहीं कर रहे हैं, इसके लिये हम जैसे नराधर्मों को धिक्कार है। नरश्रेष्ठ! आपके ही बल पराक्रम से सेवकों सहित कृपाचार्य को, मुझको तथा मेरे पिताजी को रत्नों से भरे हुए भव्य भवन प्राप्त हुए थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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