महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 21 श्लोक 1-20

एकविंश (21) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


कौरव-पाण्डव-दलों का भयंकर घमासान युद्ध


धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! जब युद्धस्थल में अश्वत्थामा द्वारा पाण्ड्य नरेश मार डाले गये और मेरे पक्ष के अद्वितीय वीर कर्ण ने जब शत्रु सैनिकों को मार भगाया, उस समय अर्जुन ने क्या किया। पाण्डुकुमार अर्जुन युद्ध विद्या की शिक्षा समाप्त कर चुके हैं। वे विजय के प्रयत्न में लगे हुए बलवान वीर हैं। भगवान शंकर ने उन्हें कृपा पूर्वक अनुगृहीत करते हुए यह कह दिया है कि 'तुम समस्त प्राणियों में प्रधान एवं अजेय होओगे'। इसलिए उन शत्रुनाशक धनंजय से मुझे अत्यन्त तीव्र एवं महान भय बना रहता है। अतः संजय! वहाँ कुन्ती कुमार अर्जुन ने जो कुछ किया हो, वह मुझे बताओ।

संजय ने कहा-राजन! पाण्ड्य नरेश के मारे जाने पर श्रीकृष्ण ने बड़ी उतावली के साथ अर्जुन से यह हितकर वचन कहा- ‘पार्थ! मैं राजा युधिष्ठिर को नहीं देख रहा हूँ। युद्धस्थल से हटे हुए अन्य पाण्डव भी मुझे नहीं दिखाई दे रहे हैं। 'पुनः लौटे हुए पाण्डव-योद्धाओं ने विशाल शत्रुसेना में भगदड़ मचा दी थी; परंतु अश्वत्थामा के संकल्प के अनुसार कर्ण ने सृंजयों का संहार कर डाला तथा अपनी सेना के हाथी, घोड़े एवं रथों का भारी विनाश कर दिया'। वीर वसुदेन नन्दन श्रीकृष्ण ने किरीटधारी अर्जुन को ये सारी बातें बतायीं। यह सुनकर तथा अपने भाई के ऊपर आये हुए घोर एवं महान भय को देखकर पाण्डु कुमार अर्जुन ने कहा- 'हृषीकेश! आप शीघ्र ही इन घोड़ों को बढ़ाइये'।

तब भगवान हृषीकेश जिसका सामना करने वाला दूसरा कोई योद्धा नहीं था उस रथ के द्वारा आगे बढ़े। उस समय वहाँ पुनः भयंकर संग्राम छिड़ा हुआ था। कौरव तथा पाण्डव योद्धा पुनः निर्भय होकर एक दूसरे से भिड़ गये थे। पाण्डव-सैनिकों के प्रधान थे भीमसेन और हम लोगों का प्रधान था सूत पुत्र कर्ण। नृपश्रेष्ठ! उस समय कर्ण का पाण्डव-सैनिकों के साथ जो पुनः संग्राम आरम्भ हुआ था, वह यमराज के राज्य की श्रीवृद्धि करने वाला था। दोनों दलों के सैनिक एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से धनुष, बाण, परिघ, खड्ग, पट्टिश, तोमर, मूसल, भुशुण्डी, शक्ति, ऋष्टि, फरसे, गदा, प्रास, तीखे कुन्त, भिन्दिपाल और बड़े-बड़े अंकुश लेकर शीघ्रता पूर्वक युद्ध के मैदान में कूद पड़े थे। रथी वीर अपने बाण सहित धनुष की प्रत्यंचा की टंकार ध्वनि एवं रथ के पहियों की घर्घराहट से आकाश, अन्तरिक्ष, दिशा, विदिशा तथा भूतल को शब्दायमान करते हुए शत्रुओं पर चढ़ आयें। कलह के पार जाने की इच्छा रखने वाले वे सभी वीर उस महान शब्द से हर्ष एवं उत्साह में भरकर विपक्षी वीरों के साथ अत्यन्त घोर संग्राम करने लगे। प्रत्यंचा, हस्तत्राण और धनुष का शब्द, चिग्घाड़ते हुए हाथियों की आवाज तथा रणभूमि में गिरते हुए पैदल मनुष्यों के महान आर्तनाद की तुमुल ध्वनि वहाँ गूँजने लगी। सामने गर्जना करने वाले शूरवीरों के ताल ठोंकने के विविध शब्द सुनकर कितने ही सैनिक वहाँ भय से थर्रा उठते थे, कितने ही गिर पड़ते थे और कितने ही ग्लानि से भर जाते थे।

जोर-जोर से गर्जते तथा अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करते हुए उन सैनिकों में से बहुतों को वीर कर्ण ने अपने बाणों से मथ डाला। उसने अपने बाणों द्वारा पांचाल वीरों से पहले पाँच फिर दस और फिर पाँच रथियों को घोड़े, सारथि एवं ध्वजों-सहित मारकर यमलोक पहुँचा दिया। तब समरांगण में पाण्डव दल के शीघ्रता पूर्वक अस्त्र चलाने वाले महापराक्रमी प्रधान-प्रधान योद्धाओं ने तुरंत आकर कर्ण को चारों ओर से घेर लिया। तदनन्तर कर्ण ने अपने बाणों की वर्षा से शत्रुसेना का मंथन करते हुए उसके भीतर उसी प्रकार प्रवेश किया, जैसे यूथपति गजराज पक्षियों से भरे हुए कमलपूर्ण सरोवर में घुसकर उसे मथने लगता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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