महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 101 श्लोक 1-16

एकाधिकशततम (101) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
गरुड़लोक तथा गरुड़ की संतानों का वर्णन
  • नारद जी कहते हैं- मातले! यह सर्पभोजी गरुड़वंशी पक्षियों का लोक है, जिन्हें पराक्रम प्रकट करने, दूर तक उड़ने और महान भार ढोने में तनिक भी परिश्रम नहीं होता। (1)
  • देवसारथी मातले! यहाँ विनतानन्दन गरुड़ के छ: पुत्रों ने अपनी वंश परंपरा का विस्तार किया है,। जिनके नाम इस प्रकार हैं- सुमुख, सुनामा, सुनेत्र, सुवर्चा, सुरूच तथा पक्षीराज सुबलविनता के वंश की वृद्धि करने वाले, कश्यप कुल में उत्पन्न हुए तथा ऐश्वर्य का विस्तार करने वाले इन छहों पक्षियों ने गरुड़-जाती की सैकड़ों और सहसत्रों शाखाओं का विस्तार किया है। (2-4)
  • ये सभी श्रीसंपन्न तथा श्रीवत्सचिह्न से विभूषित है। सभी धन संपति की कामना रखते हुए अपने भीतर अनंत बल धारण करते हैं। (5)
  • ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर भी ये कर्म से क्षत्रिय हैं। इनमें दया नहीं होती है। ये सर्पों को ही अपना आहार बनाते हैं। इस प्रकार अपने भाई-बंधुओं [1] का संहार करने के कारण इन्हें ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं है। (6)
  • मातले! अब मैं इनके कुछ प्रधान व्यक्तियों के नाम बताऊंगा, तुम श्रवण करो। इनका कुल भगवान विष्णु का पार्षद होने के कारण प्रशंसनीय है। (7)
  • भगवान विष्णु ही इनके देवता हैं। वे ही इनके परम आश्रय हैं। भगवान विष्णु इनके हृदय में सदा विराजते हैं और वे विष्णु ही सदा इनकी गति है। (8)
  • सुवर्णचूड़, नागाशी, दारुण, चंडतुंडक, अनिल, अनल, विशालाक्ष, कुंडली, पङ्क्जीत, व्रजविष्कम्भ, वैनतेय, वामन, वातवेग, दिशाचक्षु, निमेष, अनिमिष, त्रिराव, सप्तराव, वाल्मीकि, द्वीपक, दैत्यद्वीप, सरिद्द्वीप, सारस, पद्मकेतन, सुमुख, चित्रकेतु, चित्रबर्ह, अनघ, मेषहृत , कुमुद, दक्ष, सर्पान्त, सहभोजन, गुरुभार, कपोत, सूर्यनेत्र, चिरांतक, विष्णुधर्मा, कुमार, परिबर्ह, हरी, सुस्वर, मधुपर्क, हेमवर्ण, मालय, मातरिश्वा, निशाकर तथा दिवाकर। इस प्रकार संक्षेप में मैंने इन मुख्य-मुख्य गरुड़-संतानों का वर्णन किया है। ये सभी यशस्वी तथा महाबली बताए गए हैं। (9-15)
  • मातले! यदि इनमें तुम्हारी कोई रुचि न हो तो आओ, अन्यत्र चलें। अब मैं तुम्हें उन स्थानों पर ले जाऊंगा जहाँ तुम्हें कोई-न-कोई वर अवश्य मिल जाएगा। (16)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में मातलि के द्वारा वर की खोज विषयक एक सौ एकवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नागों

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