महाभारत वन पर्व अध्याय 250 श्लोक 1-13

पच्‍चाशदधिकद्विशततम (250) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पच्‍चाशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


कर्ण के समझाने पर भी दुर्योधन का आमरण अनशन करने का ही निश्‍चय

कर्ण बोला- राजन्! आज तुम यहाँ जो इतनी लघुता का अनुभव कर रहे हो, इसका कोई कारण मेरी समझ में नहीं आता। शत्रुनाशक वीर! यदि एक बार शत्रुओं के वश में पड़ जाने पर पाण्‍डवों ने तुम्‍हें छुड़ाया है, तो इसमें कौन अद्भुत बात हो गयी? कुरुश्रेष्‍ठ! जो राजकीय सेना में रहकर जीविका चलाते हैं तथा राजा के राज्‍य में निवास करते हैं, वे ज्ञात हों या अज्ञात; उनका कर्तव्‍य है कि वे सदा राजा का प्रिय करें। प्राय: देखा जाता है कि प्रधान पुरुष लड़ते-लड़ते शत्रुओं की सेना को व्‍याकुल कर देते हैं। फिर उसी युद्ध में वे बंदी बना लिये जाते हैं और साधारण सैनिकों की सहायता से छूट भी जाते हैं। जो मनुष्‍य सेनाजीवी हैं अथवा राजा के राज्‍य में निवास करते हैं, उन सबको मिलकर अपने राजा के हित के लिये यथोचित प्रयत्‍न करना चाहिये।

राजन्! यदि तुम्‍हारे राज्‍य में निवास करने वाले पाण्‍डवों ने इसी नीति के अनुसार दैववश तुम्‍हें शत्रुओं के हाथ से छुड़ा दिया है, तो इसमें खेद करने की क्‍या बात है?

राजन्! आप श्रेष्‍ठ नरेश हैं और अपनी सेना के साथ वन में पधारे हैं, ऐसी दशा में यहाँ रहने वाले पाण्‍डव यदि आपके पीछे-पीछे न चलते-आपकी सहायता न करते, तो यह उनके लिये अच्‍छी बात न होती। पाण्‍डव शौर्यसम्‍पन्न, बलवान् तथा युद्ध में पीठ न दिखाने वाले हैं। वे आपके दास तो बहुत पहले ही हो चुके हैं, अत: उन्‍हें आपका सहायक होना ही चाहिये। पाण्‍डवों के पास जितने रत्‍न थे, उन सबका उपभोग आज तुम्‍हीं कर रहे हो; तथापि देखो, पाण्‍डव कितने धैर्यवान हैं कि उन्‍होंने कभी आमरण अनशन नहीं किया। अत: महाबाहो! तुम्‍हारे इस प्रकार विषाद करने से कोई लाभ नहीं है।

राजन्! उठो, तुम्‍हारा कल्‍याण हो। अब यहाँ अधिक विलम्‍ब नहीं करना चाहिये। नरेश्‍वर! राजा के राज्‍य में निवास करने वाले लोगों को अवश्‍य ही उसके प्रिय कार्य करने चाहिये। अत: इसके लिये पछताने या विलाप करने की क्‍या बात है? शत्रुओं का मान-मर्दन करने वाले महाराज! यदि तुम मेरी यह बात नहीं मानोगे, तो मैं भी तुम्‍हारे चरणों की सेवा करता हुआ यहीं रह जाऊंगा। नरश्रेष्‍ठ! तुमसे अलग होकर मैं जीवित नहीं रहना चाहता। राजन्! आमरण अनशन के लिये बैठ जाने पर तुम समस्‍त राजाओं के उपहास पात्र हो जाओगे।

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- राजन्! कर्ण के ऐसा कहने पर राजा दुर्योधन ने स्‍वर्गलोक में ही जाने का निश्‍चय करके उस समय उठने का विचार नहीं किया।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत घोषयात्रापर्व में दुर्योधन प्रायोपवेशन के प्रसंग में कर्णवाक्‍य सम्‍बन्‍धी दो सौ पचासवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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