महाभारत आदि पर्व अध्याय 84 श्लोक 1-17

चतुरशीतितम (84) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: चतुरशीतितम अध्‍याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


ययाति का अपने पुत्र यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु और अनु से अपनी युवावस्‍था देकर वृद्धावस्‍था लेने के लिये आग्रह और उनके अस्‍वीकार करने पर उन्‍हें शाप देना, फिर अपने पुत्र पुरु को जरावस्‍था देकर उनकी युवावस्‍था लेना तथा उन्‍हें वर प्रदान करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजा ययाति बुढ़ापा लेकर वहाँ से अपने नगर में आये और अपने ज्‍येष्ठ एवं श्रेष्ठ पुत्र यदु से इस प्रकार बोले। ययाति ने कहा- 'तात! कविपुत्र शुक्राचार्य के शाप से मुझे बुढ़ापे ने घेर लिया; मेरे शरीर में झुर्रियां पड़ गयीं और बाल सफेद हो गये; किंतु मैं अभी जवानी के भोगों से तृप्त नहीं हुआ हूँ। यदो! तुम बुढ़ापे के साथ मेरे दोष को ले लो और मैं तुम्‍हारी जवानी के द्वारा विषयों का उपभोग करूं। एक हजार वर्ष पूरे होने पर मैं पुन: तुम्‍हारी जवानी देकर बुढ़ापे के साथ अपना दोष वापस ले लूंगा।

यदु बोले-राजन्! बुढ़ापे में खाने-पीने से अनेक दोष प्रकट होते हैं; अत: मैं आपकी वृद्धावस्‍था नहीं लूंगा, यही मेरा निश्चित विचार है। महाराज! मैं उस बुढ़ापे को लेने की इच्‍छा नहीं करता, जिसके आने पर दाढ़ी-मूंछ के बाल सफेद हो जाते हैं; जीवन का आनन्‍द चला जाता है। वृद्धावस्‍था एकदम शिथिल कर देती है। सारे शरीर में झुर्रियां पड़ जाती हैं और मनुष्‍य इतना दुर्बल तथा कृशकाय हो जाता है कि उसकी ओर देखते नहीं बनता। बुढ़ापे में काम-काज करने की शक्ति नहीं रहती, युवतियां तथा जीविका पाने वाले सेवक भी तिरस्‍कार करते हैं; अत: मैं वृद्धावस्‍था नहीं लेना चा‍हता। धर्मज्ञ नरेश्वर! आपके बहुत-से पुत्र हैं, जो आपको मुझसे से भी अधिक प्रिय हैं; अत: बुढ़ापा लेने के लिये किसी दूसरे पुत्र को चुन लीजिये।

ययाति ने कहा- तात! मेरे हृदय से उत्‍पन्न (औरस पुत्र) होकर भी मुझे अपनी युवावस्‍था नहीं देते; इसलिये तुम्‍हारी संतान राज्‍य की अधिकारिणी नहीं होगी। (अब उन्‍होंने तुर्वसु को बुलाकर कहा-) तुर्वसो! बुढ़ापे के साथ मेरा दोष ले लो। बेटा! मैं तुम्‍हारी जवानी से विषयों का उपभोग करूंगा। एक हजार वर्ष पूर्ण होने पर मैं तुम्‍हें जवानी लौटा दूंगा और बुढ़ापे सहित अपने दोष को वापस ले लूंगा।

तुर्वसु बोले- तात! काम-भोग का नाश करने वाली वृद्धावस्‍था मुझे नहीं चाहिये। वह बल तथा रूप का अन्‍त कर देती है और बुद्धि एवं प्राणशक्ति का भी नाश करने वाली है। ययाति ने कहा- तुर्वसो! तू मरे हृदय से उत्‍पन्न होकर भी मुझे अपनी युवावस्‍था नहीं देता है, इसलिये तेरी संतति नष्ट हो जायेगी। मूढ़! जिनके आचार और धर्म वर्णसंकरों के समान हैं, जो प्रतिलोम संकर जातियों में गिने जाते हैं तथा जो कच्चा मांस खाने वाले एवं चाण्‍डाल आदि की श्रेणी में हैं, ऐसे लोगों का तू राजा होगा। जो गुरु पत्नियों में आसक्त हैं, जो पशु-पक्षी आदि का सा आचरण करने वाले हैं तथा जिनके सारे आचार-विचार भी पशुओं के समान हैं, तू उन पाप आत्‍मा मलेच्‍छों का राजा होगा।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! राजा ययाति ने इस प्रकार अपने पुत्र तुर्वसु को शाप देकर शर्मिष्ठा के पुत्र द्रुह्यु से यह बात कही। ययाति ने कहा- द्रुह्यो! कान्ति तथा रूप का नाश करने वाली यह वृद्धावस्‍था तुम ले लो और एक हजार वर्षों के लिये अपनी जवानी मुझे दे दो। हजार वर्ष पूर्ण हो जाने पर मैं पुन: तुम्‍हारी जवानी तुम्‍हें दे दूंगा और बुढ़ापे के साथ अपना दोष फिर ले लूंगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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