एकसप्ततितम (71) अध्याय: विराट पर्व (वैवाहिक पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: एकसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद
विराट ने पूछा- यदि ये कुरुकुल के रत्न कुन्ती नन्दन राजा युधिष्ठिर हैं, तो इनमें कौन इनके भाई अर्जुन हैं? कौन महाबली भीम हैं? नकुल, सहदेव अथवा यशस्विनी द्रौपदी कौन है? जब से कुन्ती के पुत्र जूए में हार गये, तब से उनका कहीं भी पता नहीं लगा। अर्जुन बोले- महाराज! ये जो बल्लव नामधारी आपके रसोइये हैं, ये ही भयंकर वेग और पराक्रम वाले भीमसेन हैं। ये ही गन्धमादन पर्वत पर क्रोधवश नाम वाले राक्षसों को मारकर द्रौपदी के लिये दिव्य सौगन्धिक कमल ले आये थे। दुरात्मा कीचकों का संहार करने वाले गन्धर्व भी ये ही हैं। इनहोंने ही आपके अन्तःपुर में अनेक व्याघ्रों, भालुओं और वराहों का वध किया है। इन्होंने ही हिडिम्ब, बकासुर, किर्मीर और जटासुर को मारकर वन को सर्वथा निष्कण्टक और सुखमय बनाया था। और ये शत्रुओं को संताप देने वाले नकुल जो अब तक आपके यहाँ अश्वशाला के प्रबन्धक रहे हैं और ये सहदेव हैं, जो गौओं की सँभाल करते आये हैं। ये दोनों ( हमारी माता ) माद्री के पुत्र एवं महारथी वीर हैं। उत्तम श्रृंगार, सुन्दर वेष और आभूषणों से सुशोभित ये दोनों भाई बड़े ही रूपवान और यशस्वी हैं। भरतवंशियों में श्रेष्ठ ये नकुल-सहदेव युद्ध में सहस्रों महारथियों का सामना करने में समर्थ हैं। राजन! यह विकसित कमल दल के समान विशाल नेत्र, सुन्दर कटि प्रदेश और मनोहर मुस्कान वाली सैरन्ध्री ही महारानी द्रौपदी है, जिसके धर्म की रक्षा के लिय कीचकों का वध किया गया। महाराज! मैं ही अर्जुन हूँ। अवश्य मेरा नाम भी आपके कानों मे पड़ा होगा। मैं कुन्ती देवी का पुत्र हूँ। भीमसेन से छोटा और नकुल-सहदेव से बड़ा हूँ। राजन! हम लोगों ने बड़े सुख से आपके महल में अज्ञातवास का समय बिताया है। जैसे संतान गर्भावस्था में रही हो, उसी प्रकार हम भी यहाँ अज्ञातवास में रहे हैं। वैशम्पायन जी कहते हैं - राजन! जब अर्जुन ने पाँचों पाण्डव वीरों का परिचय दे दिया, तब विराट कुमार उत्तर ने अर्जुन का पराक्रम बताया। साथ ही उनहोंने पाँचों पाण्डवों का एक-एक करके पुनः राजा को परिचय दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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