महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 163 श्लोक 1-16

त्रिष्‍टयधिकशततम (163) अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमनपर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
पाँचों पाण्‍डवों, विराट, द्रुपद, शिखण्‍डी और धृष्टद्युम्न का संदेश लेकर उलूक का लौटना और उलूक की बात सुनकर दुर्योधन का सेना को युद्ध के लिये तैयार होने का आदेश देना।
  • संजय कहते हैं- भरतश्रेष्‍ठ! दुर्योधन के पूर्वोक्‍त वचन को सुनकर महायशस्‍वी अर्जुन ने क्रोध से लाल आँखें करके शकुनि कुमार उलूक की ओर देखा। तत्‍पश्‍चात अपनी विशाल भुजा को ऊपर उठाकर श्रीकृष्‍ण की ओर देखते हुए उन्‍होंने कहा- (1-2)
  • जो अपने ही बल-पराक्रम का भरोसा करके शत्रुओं को ललकारता है और उनके साथ निर्भय होकर युद्ध करता है, वही पुरुष कहलाता है। (3)
  • जो दूसरे के पराक्रम का आश्रय ले शत्रुओं को युद्ध के लिये बुलाता है, वह क्षत्रबन्‍धु असमर्थ होने के कारण लोक में पुरुषाधम कहा गया है। (4)
  • मूढ़! तू दूसरों के पराक्रम से ही अपने को बल-पराक्रम से सम्‍पन्‍न मानता है और स्‍वयं कायर होकर दूसरों पर आक्षेप करना चाहता है (5)
  • जो समस्‍त राजाओं वृद्ध, सबके प्रति हित बुद्धि रखने वाले, जितेन्द्रिय तथा महाज्ञानी हैं, उन्‍हीं पितामह को तू मरण के लिये रण की दीक्षा दिलाकर अपनी बहादुरी की बातें करता है। (6)
  • खोटी बुद्धि वाले कुलांगार! तेरा मनोभाव हमने समझ लिया है। तू जानता है कि पाण्‍डव लोग दयावश गंगानन्‍दन भीष्‍म का वध नहीं करेंगे। (7)
  • धृतराष्‍ट्र! तू जिनके पराक्रम का आश्रय लेकर बड़ी-बड़ी बातें बनाता है, उन पितामह भीष्‍म को ही मैं सबसे पहले तेरे समस्‍त धनुर्धरों के देखते-देखते मार डालूंगा। (8)
  • उलूक! तू भरतवंशियों के यहाँ जाकर धृतराष्‍ट्र दुर्योधन से कह दे कि सव्‍यसाची अर्जुन ने ‘बहुत अच्‍छा’ कह कर तेरी चुनौति स्‍वीकार कर ली है। आज की रात बीतते ही युद्ध आरम्‍भ हो जायेगा। (9)
  • सत्‍यप्रतिज्ञ और महान शक्तिशाली भीष्‍मजी ने कौरव सैनिकों के बीच में उनका हर्ष बढ़ाते हुए जो यह कहा था कि मैं सृंजय वीरों की सेना का तथा शाल्‍व देश के सैनिकों का भी संहार कर डालूंगा। इन सबके मारने का भार मेरे ही ऊपर है। दुर्योधन! मैं द्रोणाचार्य के बिना भी सम्‍पूर्ण जगत का संहार कर सकता हूँ; अत: तुम्‍हें पाण्‍डवों से कोई भय नहीं है। भीष्‍म के इस वचन से ही तूने अपने मन में यह धारणा बना ली है कि राज्‍य मुझे ही प्राप्‍त होगा और पाण्‍डव भारी विपत्ति में पड़ जायेंगें। (10-11)
  • ‘इसीलिये तू घमंड से भरकर अपने ऊपर आये हुए वर्तमान संकट को देख पाता है, अत: मैं सबसे पहले तेरे सेना समूह में प्रवेश करके कुरुकुल के वृद्ध पुरुष भीष्‍म का ही तेरी आँखों के सामने वध करूंगा। (12)
  • तू सूर्योदय के समय सेना को सुसज्जित करके ध्‍वज और रथ से सम्‍पन्‍न हो सब ओर द्रष्टि रखते हुए सत्‍यप्रतिज्ञ भीष्‍म की रक्षा कर। मैं तेरे सैनिकों के देखते-देखते तेरे लिये आश्रय बने हुए इन भीष्‍मजी को बाणों द्वारा मारकर रथ से नीचे गिरा दूंगा। (13)
  • कल सवेरे पितामह को मेरे द्वारा चलाये हुए बाणों के समूह से व्‍याप्‍त देखकर दुर्योधन को अपनी बढ़-बढ़कर कही हुर्इ बातों का परिणाम ज्ञात होगा। (14)
  • सुयोधन! क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने उस क्षुद्र विचार वाले, अधर्मज्ञ, नित्‍य वैरी, पापबुद्धि और क्रूरकर्मा तेरे भाई दु:शासन के प्रति जो बात कही है, उस प्रतिज्ञा को तू शीघ्र ही सत्‍य हुई देखेगा। (15-16)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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