सप्तपंचाशत्तम (57) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: सप्तपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-5 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अपने पुत्र दुर्योधन का मत जानकर राजा धृतराष्ट्र ने दैव को दुस्तर माना और यह कार्य किया। विद्वानों में श्रेष्ठ विदुर ने धृतराष्ट्र वह अन्यायपूर्ण आदेश सुनकर भाई की उस बात का अभिनन्दन नहीं किया और इस प्रकार कहा। विदुर बोल- महाराज! मैं आपके इस आदेश का अभिनन्दन नहीं करता, आप ऐसा काम मत कीजिये। इससे मुझे समस्त कुल के विनाश का भय है। नरेन्द्र! पुत्रों में भेद होने पर निश्चय ही आपको कलह का सामना करना पड़ेगा। इस जूए के कारण मुझे भी ऐसी आशंका हो रही है। धृतराष्ट्र ने कहा- विदुर! यदि दैव प्रतिकूल न हो, तो मुझे कलह भी कष्ट नहीं दे सकेगा। विधाता का बनाया हुआ यह सम्पूर्ण जगत् दैव के अधीन होकर ही चेष्टा कर रहा है, स्वतन्त्र नहीं है। इसलिये विदुर! तुम मेरी आज्ञा से आज राजा युधिष्ठिर के पास जाकर उन दुर्द्धर्ष कुन्तीकुमार युधिष्ठिर को यहाँ शीघ्र बुला ले आओ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत द्यूतपर्व में युधिष्ठिर के बुलाने से सम्बंध रखने वाला सत्तावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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