महाभारत आदि पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-12

चतु:पंचाशत्तम (54) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: चतु:पंचाशत्तम अध्‍याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद
माता की आज्ञा से मामा को सांत्वना देकर आस्तीक का सर्पयज्ञ में जाना

उग्रश्रवा जी कहते हैं- जब नागकन्या जरत्कारू नागराज वासुकि के कथनानुसार अपने पुत्र को बुलाकर इस प्रकार बोली- ‘बेटा! मेरे भैया ने एक निमित्त को लेकर तुम्‍हारे पिता के साथ मेरा विवाह किया था। उसकी पूर्ति का यही उपयुक्त अवसर प्राप्त हुआ है। अतः तुम यथावत रूप से उस उद्देश्य की पूर्ति करो’। आस्तीक ने पूछा- मां! मामा जी ने किस निमित्त को लेकर पिता जी के साथ तुम्हारा विवाह किया था? वह मुझे ठीक-ठीक बताओ। उसे सुनकर मैं उसकी सिद्धि के लिये प्रयत्न करूँगा। उग्रश्रवा जी कहते हैं- तदनन्तर अपने भाई-बन्धुओं का हित चाहने वाली नागराज की बहिन जरत्कारु शान्तचित्त हो आस्तीक से बोली। जरत्कारु ने कहा- 'वत्स! सम्पूर्ण नागों की माता कद्रू नाम से विख्यात हैं। उन्होंने किसी समय रुष्ट होकर अपने पुत्रों को शाप दे दिया था। जिस कारण से वह शाप दिया, वह बताती हूँ, सुनो।

(अश्वों का राजा जो उच्चैःश्रवा है, उसके रंग को लेकर विनता के साथ कद्रू ने बाजी लगायी थी। उसमें यह शर्त थी ‘जो हारे वह जीतने वाली की दासी बने।' कद्रू उच्चैःश्रवा की पूँछ काली बता चुकी थी। अतः उसने अपने पुत्रों से कहा- ‘तुम लोग छलपूर्वक उस घोड़े की पूँछ काले रंग की कर दो।’ सर्प इससे सहमत न हुए। तब उन्होंने सर्पों को शाप देते हुए कहा-) पुत्रों! तुम लोगों ने मेरे कहने से अश्वराज उच्चैःश्रवा की पूँछ का रंग न बदलकर विनता के साथ जो मेरी दासी होने की शर्त थी, उसमें- उस घोड़े के सम्बन्ध में विनता के कथन को मिथ्या नहीं कर दिखाया, इसलिये जनमेजय के यज्ञ में तुम लोगों को आग जलाकर भस्म कर देगी और तुम सभी मरकर प्रेतलोक को चले जाओगे। कद्रू ने जब इस प्रकार शाप दे दिया। तब साक्षात लोक पितामह भगवान ब्रह्मा ने ‘एवमस्तु’ कहकर उसके वचन का अनुमोदन किया।

तात! मेरे भाई वासुकि ने भी उस समय पितामह की बात सुनी थी। फिर अमृत मन्थन का कार्य हो जाने पर वे देवताओं की शरण में गये। देवता लोग मेरे भाई की सहायता से उत्तम अमृत पाकर अपना मनोरथ सिद्ध कर चुके थे। अतः ये मेरे भाई को आगे करके पितामह ब्रह्मा जी के पास गये। वहाँ समस्त देवताओं ने नागराज वासुकि के साथ रहकर पितामह ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। उन्हें प्रसन्न करने का उद्देश्य यह था कि माता का शाप लागू न हो। देवता बोले- भगवन! ये नागराज वासुकि अपने जाति-भाईयों के लिये बहुत दुःखी हैं। कौन-सा ऐसा उपाय है, जिससे माता का शाप इन लोगों पर लागू न हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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