महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 90 श्लोक 1-13

नवतितमम (90) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन के बाणों से हताहत होकर सेनासहित दुःशासन का पलायन

  • धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! किरीटधारी अर्जुन की मार खाकर उस अग्रगामी सैन्यदल के पलायन कर जाने पर वहाँ रणक्षेत्र में किन वीरों ने अर्जुन पर धावा किया था? (1)
  • अथवा ऐसा तो नहीं हुआ कि अपना मनोरथ सफल न होने पर वे परकोटे की भाँति खडे़ हुए द्रोणाचार्य का आश्रय लेकर सर्वथा निर्भय शकटव्यूह में घुस गये हों। (2)
  • संजय ने कहा- निष्पाप नरेश! जब इन्द्रपुत्र अर्जुन ने पूर्वोक्त प्रकार से आप की सेना के वीरों को मारकर उसे हतोत्साह एवं भागने के लिये विवश कर दिया, सभी सैनिक पलायन करने का ही अवसर देखने लगे तथा उनके ऊपर निरन्तर श्रेष्‍ठ बाणों की मार पड़ने लगी, उस समय वहाँ संग्राम में कोई भी अर्जुन की ओर आँख उठाकर देख न सका। (3-4)
  • राजन! सेना की वह दुरवस्था देखकर आपके पुत्र दुःशासन को बड़ा क्रोध हुआ और वह युद्ध के लिये अर्जुन के सामने जा पहुँचा। (5)
  • उसने अपने-आप को सुवर्णमय विचित्र कवच के द्वारा ढक लिया था, उसके मस्तक पर जाम्बूनद सुवर्ण का बना हुआ शिरस्त्राण (टोपी) शोभा पा रहा था। वह दुःसह पराक्रम करने वाला शूरवीर था। (6)
  • महाराज! दुःशासन ने अपनी विशाल गजसेना द्वारा अर्जुन को इस प्रकार चारों ओर से घेर लिया, मानो वह सारी पृथ्वी को ग्रास लेने के लिये उद्यत हो। (7)
  • हाथियों के घंटों की ध्वनि, शंखनाद, धनुष की टंकार और गजराजों के चिग्घाड़ने के शब्द से पृथ्वी, दिशाएँ तथा आकाश- ये सभी गूँज उठे थे। उस समय दुःशासन दो घड़ी के लिये अत्यन्त भयंकर एवं दारुण हो उठा। (8-9)
  • महावतों द्वारा अंकुशों से हाँके जाने पर लम्बी सूँड उठाये और क्रोध में भरे पंखवारी पर्वतों के समान उन हाथियों को बड़े वेग से अपने ऊपर आते देख मनुष्यों में सिंह के समान पराक्रमी अर्जुन ने बड़े जोर से सिहंनाद करके शत्रुओं की उस गजसेना का बिना किसी भय के बाणों द्वारा संहार कर डाला। (10-11)
  • वायु द्वारा ऊपर उठाये हुए ऊँची-ऊँची तरंगों से युक्त महासागर के समान उस गजसैन्य में किरीटधारी अर्जुन ने मकर के समान प्रवेश किया। (12)
  • जैसे प्रलयकाल में सूर्यदेव सीमा का उल्लंघन करके तपने लगते हैं, उसी प्रकार शत्रुओं की राजधानी पर विजय पाने वाले अर्जुन सम्पूर्ण दिशाओं में असीम पराक्रम करते हुए दिखायी देने लगे। (13)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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