महाभारत आदि पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-13

द्विसप्ततितम (72) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्विसप्ततितम अध्‍याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


मेनका-विश्वामित्र-मिलन, कन्या की उत्पत्ति, शकुन्त पक्षियों के द्वारा उसकी रक्षा और कण्व का उसे अपने आश्रम पर लाकर शकुन्तला नाम रखकर पालन करना

(शकुन्तला दुष्यन्त से कहती है-) महर्षि कण्व ने (पूर्वोक्त ऋषि से शेष वृत्तान्त इस प्रकार) कहा- मेनका के ऐसा कहने पर इन्द्र देव ने वायु को उसके साथ जाने का आदेश दिया। तब मेनका वायुदेव के साथ समयानुसार वहाँ से प्रस्थित हुई। वन में पहुँचकर भीरू स्वभाव वाली सुन्दरी मेनका ने एक आश्रम में विश्वामित्र मुनि को तप करते देखा। वे तपस्या द्वारा अपने समस्त पाप दग्ध कर चुके थे। उस समय महिषे को प्रणाम करके वह अप्सरा उनके समीवर्ती स्थान में ही भाँति-भाँति की क्रीड़ाऐं करने लगी। इतने में ही वायु ने मेनका का चन्द्रमा के समान उज्ज्वल वस्त्र उसके शरीर से हटा दिया। यह देख सुन्दरी मेनका लजाकर वायुदेव को कोसती एवं मुस्कराती हुई सी वह वस्त्र लेने की इच्छा से तुरन्त ही उस स्थान की ओर दौड़ी गई, जहाँ वह गिरा था। अग्नि के समान तेजस्वी महर्षि विश्वामित्र के देखते-देखते वहाँ यह घटना घटित हुई। वह अनिन्द्य सुन्दरी विषम परिस्थिति में पड़ गयी थी और घबराकर वस्त्र लेने की इच्छा कर रही थी। उसका रूप-सौन्दर्य अवर्णनीय था। तरुणावस्था भी अद्भुत थी। उस सुन्दरी अप्सरा को मुनिवर विश्वामित्र ने वहाँ नंगी देख लिया। उसके रूप और गुणों को देखते ही विप्रवर विश्वामित्र काम के अधीन हो गये। सम्पर्क में आने के कारण मेनका में उनका अनुराग हो गया। उन्होंने मेनका को अपने निकट आने का निमन्त्रण दिया। अनिन्द्य सुन्दरी मेनका तो यह चाहती ही थी, उनसे सम्बन्ध स्थापित करने के लिये वह राजी हो गयी।

तदनन्तर वे दोनों वहाँ सुदीर्घ काल तक इच्छानुसार विहार तथा रमण करते रहे। वह महान काल उन्हें एक दिन के समान प्रतीत हुआ। काम और क्रोध पर विजय न पा सकने वाले उन सदा क्षमाशील महर्षि ने दीर्घकाल से उपार्जित की हुई तपस्या को नष्ट कर दिया। तपस्या क्षय होने से मुनि के मन पर मोह छा गया। तब मेनका काम तथा राग के वशीभूत हुए मुनि के पास गयी। ब्रह्मन्! फिर मुनि ने मेनका के गर्भ से हिमालय के रमणीय शिखर पर मालिनी नदी के किनारे शकुन्तला को जन्म दिया। मेनका का काम पूरा हो चुका था; वह उस नवजात गर्भ को मालिनी के तट पर छोड़कर तुरन्त इन्द्रलोक को चली गयी। सिंह और व्याघ्रों से भरे हुए निर्जन वन में उस शिशु को सोते देख शकुन्तों (पक्षियों) ने उसे सब ओर से पांखों द्वारा ढक लिया; जिससे कच्चे मांस खाने वाले गीध आदि जीव वन में इस कन्या की हिंसा न कर सकें। इस प्रकार शकुन्त ही मेनकाकुमारी की रक्षा कर रहे थे। उसी समय आचमन करने के लिये जब मैं मालिनी तट पर गया तो देखा- यह रमणीय निर्जन वन में पक्षियों से घिरी हुई सो रही है। मुझे देखते ही वे सब मधुरभाषी पक्षी मेरे पैरों पर गिर गये और सुन्दर वाणी में इस प्रकार कहने लगे। पक्षी बोले- ब्रह्मन्! यह विश्वामित्र की कन्या आपके यहाँ धरोहर के रूप में आयी है। आप इसका पालन-पोषण कीजिये। कौशिकी के तट पर गये हुए आपके सखा विश्वामित्र काम और क्रोध को नहीं जीत सके थे। आप दयालु हैं; इसलिये उनकी पुत्री का पालन कीजिये। इस प्रकार पक्षियों ने कहा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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