त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
पृथ्वीनाथ! कुछ काल के पश्चात बहुत से तपोधन मुनि सरस्वती के तट पर तीर्थ यात्रा के लिये पधारे। पूर्वोक्त सभी तीर्थो में गोता लगा कर वे तपस्या के लोभी विज्ञ मुनिवर पूर्ण प्रसन्न हो उसी ओर गये, जिधर रक्त की धारा बहाने वाला पूर्वोक्त तीर्थ था। नृपश्रेष्ठ! वहाँ आकर उन महाभाग मुनियों ने देखा कि उस तीर्थ की दारुण दशा हो गयी है, वहाँ सरस्वती का जल रक्त से ओतप्रोत है और बहुत से राक्षस उस का पान कर रहे हैं। राजन! उन राक्षसों को देखकर कठोर व्रत का पालन करने वाले मुनियों ने सरस्वती के उस तीर्थ की रक्षा के लिये महान प्रयत्न किया। उन सभी महान व्रतधारी महाभाग ऋषियों ने मिलकर सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती को बुला कर पूछा- ‘कल्याणि! तुम्हारा यह कुण्ड इस प्रकार रक्त से मिश्रित क्यों हो गया? इसका क्या कारण है? बताओ। उसे सुन कर हम लोग कोई उपाय सोचेंगे’। तब कांपती हुई सरस्वती ने सारा वृत्तान्त यथार्थ रूप से कह सुनाया। उसे दुखी देख वे तपोधन महर्षि उससे बोले- ‘निष्पाप सरस्वती! हमने शाप और उसका कारण सुन लिया। ये सभी तपोधन इस विषय में समयोचित कर्त्तव्य का पालन करेंगे’। सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती ऐसा कह कर वे आपस में बोले-‘हम सब लोग मिलकर इस सरस्वती को शाप से छुटकारा दिलावें’। राजन! उन सभी ब्राह्मणों ने तप, नियम, उपवास, नाना प्रकार के संयम तथा कष्ट साध्यव्रतों के द्वारा पशुपति विश्वनाथ महादेव जी की आराधना करके सरिताओं में श्रेष्ठ उस सरस्वती देवी को शाप से छुटकारा दिलाया। उनके प्रभाव से सरस्वती प्रकृतिस्थ हुई, उस का जल पूर्ववत स्वच्छ हो गया। राजन! शाप मुक्त हुई सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती पहले की भाँति शोभा पाने लगी। उन मुनियों के द्वारा सरस्वती का जल वैसा शुद्ध कर दिया गया- यह देखकर वे भूखे हुए राक्षस उन्हीं महर्षियों की शरण में गये। राजन! तदनन्तर वे भूख से पीड़ित हुए राक्षस उन सभी कृपालु मुनियों से बारंबार हाथ जोड़ कर कहने लगे- ‘महात्माओ! हम भूखे हैं। सनातन धर्म से भ्रष्ट हो गये हैं। ‘हम लोग जो पापाचार करते हैं, यह हमारा स्वेच्छाचार नहीं है। आप-जैसे महात्माओं की हम लोगों पर कभी कृपा नहीं हुई और हम सदा दुष्कर्म ही करते चले आये। इससे हमारे पाप की निरन्तर वृद्धि होती रहती है और हम ब्रह्म राक्षस हो गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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