शततम (100) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: शततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
श्रीकृष्ण के द्वारा अश्वपरिचर्या तथा खा-पीकर हष्ट-पुष्ट हुए अश्वों द्वारा अर्जुन का पुन: शत्रु सेना पर आक्रमण करते हुए जयद्रथ की ओर बढ़ना संजय कहते हैं- राजन! जब महात्मा कुन्तीकुमार अर्जुन ने वह जल उत्पन्न कर दिया, शत्रुओं की सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया और बाणों का घर बना दिया, तब महातेजस्वी भगवान श्रीकृष्ण तुरंत ही रथ से उतरकर कंकपत्र युक्त बाणों से क्षत-विक्षत हुए घोड़ों को खोल दिया। यह अद्दष्टपूर्व कार्य देखकर सिद्ध, चारण तथा सैनिकों के मुख से निकला हुआ महान साधुवाद सब ओर गूंज उठा। पैदल युद्ध करते हुए कुन्तीकुमार अर्जुन को समस्त महारथी भी मिलकर भी न रोक सके; यह अद्भुत सी बात हुई। रथियों के समूह तथा बहुत से हाथी घोड़े सब ओर से उन पर टूट पड़े थे, तो भी उस समय कुन्तीकुमार अर्जुन को तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उनका यह धैर्य और साहस समस्त पुरुषों से बढ़ चढ़कर था। सम्पूर्ण भूपाल पाण्डुनन्दन अर्जुन पर बाण समूहों की वर्षा कर रहे थे, तो भी शत्रुवीरों का संहार करने वाले इन्द्रकुमार धर्मात्मा पार्थ तनिक भी व्यथित नहीं हुए। उन पराक्रमी कुन्तीकुमार ने शत्रुओं के उन बाण समूहों, गदाओं और प्रासों को अपने पास आने पर उसी प्रकार ग्रस लिया, जैसे समुद्र सरिताओं को अपने में मिला लेता है। अर्जुन ने अस्त्रों के महान वेग और बाहुबल से समस्त राजाधिराजों के उत्तमोत्तम बाणों को नष्ट कर दिया। महाराज! अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण दोनों के उस अत्यन्त अद्भुत पराक्रमी समस्त कौरवों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। संसार में इससे बढ़कर और कोई अत्यन्त अद्भुत घटना क्या होगी अथवा हुई होगी कि अर्जुन और श्रीकृष्ण ने उस भयंकर संग्राम में भी घोड़ों को रथ से खोल दिया। उन दोनों नरश्रेष्ठ वीरों ने हम लोगों में महान भय उत्पन्न कर दिया और युद्ध के मुहाने पर निर्भय और निश्चिन्त होकर अपने भयानक तेज का प्रदर्शन किया। भरतनन्दन! युद्ध स्थल में अर्जुन के बनाये हुए उस बाण निर्मित गृह में भगवान श्रीकृष्ण उसी प्रकार मुसकराते हुए निर्भय खडे़ थे, मानो वे स्त्रियों के बीच में हों। प्रजानाथ! कमल नयन श्रीकृष्ण ने आप के सम्पूर्ण सैनिकों के देखते-देखते उद्वेग शून्य होकर उन घोड़ों को टहलाया। घोड़ों की चिकित्सा करने में कुशल श्रीकृष्ण ने उनके परिश्रम, थकावट, वमन, कम्पन और घाव सारे कष्टों को दूर कर दिया। उन्होंने अपने दोनों हाथों से बाण निकालकर उन घोड़ों को मला और यथोचित रुप से टहलाकर उन्हें पानी पिलाया। श्रीकृष्ण ने पानी पिलाकर उन्हें नहलाया, घास और दाने खिलाये तथा जब उनकी सारी थकावट दूर हो गयी, तब पुन: उस उत्तम रथ में उन्हें बड़ी प्रसन्नता के साथ जोत दिया। तदनन्तर सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ महातेजस्वी श्रीकृष्ण उस उत्तम रथ पर अर्जुन सहित आरुढ़ हो बड़े वेग से आगे बढ़े। रथियों में श्रेष्ठ अर्जुन के उस रथ को समरागंण में पानी पीकर सुस्ताये हुए घोड़ों से जुता हुआ देख कौरव सेना के श्रेष्ठ वीर फिर उदास हो गये। राजन! टूटे दांतवाले सर्पों के समान लंबी सांस खींचते हुए वे पृथक-पृथक कहने लगे-‘अहो! हमें धिक्कार है, धिक्कार है, अर्जुन और श्रीकृष्ण तो चले गये’। आपकी सम्पूर्ण सेनाएं वह अद्भुत रोमाञ्चकारी व्यापार देखकर अपने साथियों को पुकार-पुकार कर कहने लगीं- वीरों! ऐसा नहीं हो सकता। तुम सब लोग शीघ्रतापूर्वक उनका पीछा करो’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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