त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-9 का हिन्दी अनुवाद
दुर्बुद्धि! तुम मेरे गुणों का वर्णन करने में असमर्थ होकर बहुत-सी ऊटपटांग बातें बकते जा रहे हो। मद्रनिवासी शल्य! कर्ण इस संसार में भयभीत होने के लिये पैदा नहीं हुआ है। मैं तो पराक्रम प्रकट करने और अपने यश को फैलाने के लिये ही उत्पन्न हुआ हूँ। शल्य! एक तो तुम सारथि बनकर मेरे सखा हो गये हो, दूसरे सौहार्दवश मैंने तुम्हें क्षमा कर दिया है और तीसरे मित्र दुर्योधन की अभीष्ट सिद्धि का मेरे मन में विचार है- इन्हीं तीन कारणों से तुम अब तक जीवित हो। राजा दुर्योधन का महान कार्य उपस्थित हुआ है और उसका सारा भार मुझ पर रखा गया है। शल्य! इसीलिये तुम क्षण भर भी जीवित हो। इसके सिवा, मैंने पहले ही यह शर्त कर दी है कि तुम्हारे अप्रिय वचनों को क्षमा करूँगा। वैसे तो हजारों शल्य न रहें तो भी शत्रुओं पर विजय पा सकता हूँ; परंतु मित्रद्रोह महान पाप है, इसीलिये तुम अब तक जीवित हो। इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में कर्ण और शल्य का संवाद विषयक तैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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