महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 27 श्लोक 1-19

सप्तविंश (27) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तविंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


ब्राह्मणत्व के लिये तपस्या करने वाले मतंग की इन्द्र से बातचीत

युधिष्ठिर ने पूछा- धर्मात्माओं में श्रेष्ठ नरेश्वर! आप बुद्धि, विद्या, सदाचार, शील और विभिन्न प्रकार के सम्पूर्ण सद्गुणों से सम्पन्न हैं। आपकी अवस्था भी सबसे बड़ी है। आप बुद्धि, प्रज्ञा और तपस्या से विशिष्ट हैं; अतः मैं आप से धर्म की बात पूछता हूँ। संसार में आपके सिवा दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जिससे सब प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकें। नृपश्रेष्ठ! यदि क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र ब्राह्मणत्व प्राप्त करना चाहे तो वह किस उपाय से उसे पा सकता है? यह मुझे बताइये। पितामह! यदि कोई ब्राह्मणत्व पाने की इच्छा करे तो वह उसे तपस्या, महान कर्म अथवा वेदों के स्वाध्याय आदि किस उपाय से प्राप्त कर सकता है?

भीष्म जी ने कहा- तात युधिष्ठिर! क्षत्रिय आदि तीन वर्णों के लिये ब्राह्मणत्व प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि यह समस्त प्राणियों के लिये सर्वोत्तम स्थान है। तात! बहुत-सी योनियों में बारंबार जन्म लेते-लेते कभी किसी समय संसारी जीव ब्राह्मण की योनि में जन्म लेता है। युधिष्ठिर! इस विषय में जानकार मनुष्य मतंग और गर्दभी के संवादरूप इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं। तात! पूर्वकाल में किसी ब्राह्मण के एक मतंग नामक पुत्र हुआ, जो (अन्य वर्ण के पुरुष से उत्पन्न होने पर भी ब्राह्मणोचित्त संस्कारों के प्रभाव से) उनके समान वर्ण का ही समझा जाता था, वह समस्त सद्गुणों से सम्पन्न था। शत्रुओं को संताप देने वाले कुन्तीकुमार! एक दिन अपने पिता के भेजने पर मतंग किसी यजमान का यज्ञ कराने के लिये गधों से जुते हुए शीघ्रगामी रथ पर बैठकर चला।

राजन! रथ का बोझ ढोते हुए एक छोटी अवस्था के गधे को उसकी माता के निकट ही मतंग ने बारंबार चाबुक से मारकर उसकी नाक में घाव कर दिया। पुत्र का भला चाहने वाली गधी उस गधे की नाक में दुस्सह घाव हुआ देख उसे समझती हुई बोली- बेटा! शोक न करो। तुम्हारे ऊपर ब्राह्मण नहीं, चाण्डाल सवार है। ’ब्राह्मण में इतनी क्रूरता नहीं होती। ब्राह्मण सब के प्रति मैत्रीभाव रखने वाला बताया जाता है। जो समस्त प्राणियों को उपदेश देने वाला आचार्य है, वह कैसे किसी पर प्रहार करेगा? यह स्वभाव से ही पापात्मा है; इसीलिये दूसरे के बच्चे पर दया नहीं करता है। यह अपने इस कुकृत्य द्वारा अपनी चाण्डाल योनि का ही सम्मान बढ़ा रहा है। जातिगत स्वभाव ही मनोभाव पर नियंत्रण करता है।

गधी का यह दारुण वचन सुनकर मतंग तुरंत रथ से उतर पड़ा और गधी से इस प्रकार बोला- कल्याणमयी गर्दभी! मेरी माता किस से कलंकित हुई है? तू मुझे चाण्डाल कैसे समझती है? शीघ्र मुझसे सारी बात बता। गधी! तुझे कैसे मालूम हुआ कि मैं चाण्डाल हूँ? किस कर्म से मेरा ब्राह्मणत्व नष्ट हुआ है? तू बड़ी समझदार है; अतः ये सारी बातें मुझे ठीक-ठीक बता।

गदही बोली- मतंग! तू यौवन के मद से मतवाली हुई एक ब्राह्मणी के पेट से शूद्र जातीय नाई द्वारा पैदा किया गया, इसीलिये तू चाण्डाल है और तेरी माता के इसी व्यभिचार कर्म से तेरा ब्राह्मणत्व नष्ट हो गया है।

गदही के ऐसा कहने पर मतंग फिर अपने घर को लौट गया। उसे लौटकर आया देख पिता ने इस प्रकार कहा- बेटा! मैंने तो तुम्हें यज्ञ कराने के भारी कार्य पर लगा रखा था, फिर तुम लौट कैसे आये? तुम कुशल से तो हो न?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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