महाभारत सभा पर्व अध्याय 3 श्लोक 1-18

तृतीय (3) अध्‍याय: सभा पर्व (सभाक्रिया पर्व)

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महाभारत: सभा पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

मयासुर का भीमसेन और अर्जुन को गदा और शंख लाकर देना तथा उसके द्वारा अद्भुत सभा का निर्माण

(‘कुन्तीकुमार धनंजय! मैं आपके लिये तीनों लोकों में विख्यात एक दिव्य सभा का निर्माण करूँगा। जो समस्त प्राणियों को आश्चर्य में डालने वाली तथा आपके साथ ही समस्त पाण्डवों की प्रसन्नता बढ़ाने वाली होगी।)

  • ‘पूर्वकाल में जब दैत्य लोग कैलास पर्वत से उत्तर दिशा में स्थित मैनाक पर्वत पर यज्ञ करना चाहते थे, उस समय मैंने एक विचित्र एवं रमणीय मणिमय भाण्ड तैयार किया था, जो बिन्दुसर के समीप सत्यप्रतिज्ञ राजा वृषपर्वा की सभा में रखा गया था। (2-3)
  • ‘भारत! यदि वह अब तक वहीं होगा तो उसे लेकर पुनः लौट आऊँगा। फिर उसी से पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर के यश को बढ़ाने वाली सभा तैयार करूँगा। (4)
  • ‘जो सब प्रकार के रत्नों से विभूषित, विचि एवं मन को आह्लाद प्रदान करने वाली होगी। कुरुनन्दन! बिन्दुसर में एक भयंकर गदा भी है। (5)
  • ‘मैं समझता हूँ, राजा वृषपर्वा ने युद्ध में शत्रुओं का संहार करके वह गदा वहीं रख दी थी। वह गदा बड़ी भारी है, विशेष भार या आघात सहन करने में समर्थ एवं सुदृढ़ है। उसमें सोने की फूलियाँ लगी हुई है, जिनसे वह बड़ी विचित्र दिखायी देती है। (6)
  • ‘शत्रुओं का संहार करने वाली वह गदा अकेली ही एक लाख गदाओं के बराबर है। जैसे गाण्डीव धनुष आपके योग्य है, वैसे ही वह गदा भीमसेन के योग्य होगी। (7)
  • ‘वहाँ वरुण देव का देवदत्त नामक महान शंख भी है, जो बड़ी भारी आवाज करने वाला है। ये सब वस्तुएँ लाकर मैं आपको भेंट करूँगा, इसमें संशय नहीं है’। (8)
  • अर्जुन से ऐसा कहकर मयासुर पूर्वोत्तर दिशा[1] में कैलास से उत्तर मैनाक पर्वत के पास गया। (9)
  • ‘वहीं हिरण्यश्रृंग नाम महामणिमय विशाल पर्वत है, जहाँ रमणीय बिन्दुसर नामक तीर्थ है। वहीं राजा भगीरथ ने भागीरथी गंगा का दर्शन करने के लिये बहुत वर्षों तक[2] निवास किया था। (10)
  • भरतश्रेष्ठ! वहीं सम्पूर्ण भूतों के स्वामी महात्मा प्रतापति ने मुख्य-मुख्य सौ यज्ञों का अनुष्ठान किया था, जिनमें सोने की वेदियाँ और मणियों के खंभे बने थे। (12)
  • यह सब शोभा के लिये बनाया गया था, शास्त्रीय विधि अथवा सिद्धान्त के अनुसार नहीं। सहस्र नेत्रों वाले शचीपति इन्द्र ने भी वहीं यज्ञ करके सिद्धि प्राप्त की थी। (13)
  • सम्पूर्ण लोकों के स्रष्टा और समस्त प्राणियों के अधिपति उग्र तेजस्वी सनातन देवता महादेव जी वहीं रहकर सहस्रों भूतों से सेवित होते हैं। (14)
  • एक हजार युग बीतने पर वहीं नर-नारायण ऋषि, ब्रह्मा, यमराज और पाँचवें महादेव जी यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं। (15)
  • यह वही स्थान है, जहाँ भगवान वासुदेव ने धर्म परम्परा की रक्षा के लिये बहुत वर्षों तक निरंतर श्रद्धापूर्वक यज्ञ किया था। (16)
  • उस यज्ञ में स्वर्णमालाओं से मण्डित खंभे और अत्यन्त चमकीली वेदियाँ बनी थी। भगवान केशव ने उस यज्ञ में सहस्रों-लाखों वस्तुएँ दान में दी थीं। (17)
  • भारत! तदनन्तर मयासुर ने वहाँ जाकर वह गदा, शंख और सभा बनाने के लिये स्फटिक मणिमय द्रव्य ले लिया, जो पहले वृषपर्वा के अधिकार में था। (18)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ईशानकोण
  2. तपस्या करते हुए

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