त्र्यशीतितम (83) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
जिनका सदाचार नष्ट नहीं हुआ है, जो विद्वान्, सदाचारी और उत्तम व्रत का पालन करने वाले है; जिन्हें सदा तुमसे अभीष्ट वस्तु के लिये प्रार्थना करने की आवश्यकता पड़ती है तथा जो श्रेष्ठ और सत्यवादी हैं, वे कभी तुम्हारा साथ नहीं छोड सकते। जो अनार्य और मन्दबुद्धि हैं, जिन्हें की हुई प्रतिज्ञा के पालन का ध्यान नहीं रहता तथा जो कई बार अपनी प्रतिज्ञा गिर चुके हैं, उनसे अपने को सुरक्षित रखने क लिये तुम्हें सदा सावधान रहना चाहिये। एक ओर एक व्यक्ति हो और दुसरी ओर एक समूह हो तो समूह हो तो समूह को छोड़कर एक व्यक्ति को ग्रहण करने की इच्छा न करे। परंतु जो एक मनुष्य बहुत मनुष्यों की ग्रहण करना पडे ऐसी परिस्थिति में कल्याण चाहने वाले पुरुष को उस एक के लिये समूह को त्याग देना चाहिऐ। श्रेष्ठ पुरुष का लक्षण इस प्रकार है- जिसका पराक्रम देखा जाता हो, जिसके जीवन में कीर्ति की प्रधानता हो, जो अपनी प्रतिज्ञा पर स्थिर रहता हो, सामर्थ्यशाली पुरुषों का सम्मान करता हो, जो स्पर्धा के अयोग्य पुरुषों से ईर्ष्या न रखता हो, कामना भय, क्रोध अथवा लोभ से धर्म का उल्लंघन न करता हो, जिसमें अभिमान का अभाव हो, जो सत्यवान क्षमाशील, जितात्मा तथा सम्मानित हो और जिसकी सभी अवस्थाओं में परीक्षा कर ली गयी हो, ऐसा पुरुष ही तुम्हारी गुप्त मन्त्रणा में सहायक होना चाहिऐ। कुन्तीनन्दन! उत्तम कुल में जन्म होना, सदा श्रेष्ठ कुल के सम्पर्क में रहना, सहनशीलता, कार्यदक्षता, मनस्विता, शूरता, कृतज्ञता और सत्यभाषण- ये ही श्रेष्ठ पुरुष के लक्षण हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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