त्र्यशीतितम (83) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 17-33 का हिन्दी अनुवाद
वैसा मन्त्री सभी कार्यों में अवश्य ही संशय उत्पन्न कर देता है। इसी प्रकार जो मन्त्री उत्तम कुल में उत्पन्न होने पर भी शास्त्रों का बहुत कम ज्ञान रखता हो, वह धर्म, अर्थ और काम से संयुक्त होकर भी गुप्त मन्त्रणा की परीक्षा नहीं कर सकता। वैसे ही जो अच्छे कुल में उत्पन्न नहीं है, वह भले ही अनेक शास्त्रों का विद्वान हो, किंतु नायक रहित सैनिक तथा नेत्रहीन मनुष्य की भाँति वह छोटे-छोटे कार्यों में भी मोहित हो जाता है- कर्तव्या कर्तव्य का विवेक नहीं कर पाता। जिसका संकल्प स्थिर नहीं है, वह बुद्धिमान, शास्त्रज्ञ और उपायों का जानकार होने पर भी किसी कार्य को दीर्घकाल में भी पूरा नहीं कर सकता। जिसकी बुद्धि खोटी है तथा जिसे शास्त्रों का बिल्कुल ज्ञान नहीं है, वह केवल मन्त्री का कार्य हाथ में ले लेेने मात्र से सफल नहीं हो सकता। विशेष कार्यों के विषय में उसका दिया हुआ परामर्श युक्ति संगत नहीं होता है। जिस मन्त्री का राजा के प्रति अनुराग न हो , उसका विश्राम करना ठीक नहीं है अतः अनुराग रहित मन्त्री के सामने अपने गुप्त विचारो को प्रकट न करे। वह कपटी मन्त्री यदि गुप्त विचारों को जान ले तो अन्य मन्त्रीयों के साथ मिलकर राजा को उसी प्रकार पीड़ा देता है, जैसे आग हवा से भरे हुए छेदों मे घुसकर समूचे वृ़क्ष को भस्म कर डालती है। राजा इन सब बर्तावों को वही मन्त्री को उसके स्थान से हटा देता है और रोष में भरकर वाणी द्वारा उस पर आक्षेप भी करता है परन्तु फिर अन्त में प्रसन्न हो जाता है। राजा के इन सब बर्तावों को वही मन्त्री सह सकता है, जिसका उसके प्रति अनुराग हो। अनुराग शून्य मन्त्रीयों का क्रोध वज्रपात के समान भयंकर होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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