महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-20

चतु:पंचाशत्तम (54) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: चतु:पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


भीमसेन का कलिंगों और निषादों से युद्ध, भीमसेन के द्वारा शुक्रदेव, भानुमान और केतुमान का वध तथा उनके बहुत से सैनिकों का संहार


धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! दुर्योधन की आज्ञा पाकर सेनापति कलिंगराज ने अद्भुत पराक्रमी महाबली भीमसेन के साथ किस प्रकार युद्ध किया? वीरवर भीमसेन जब गदा हाथ में लेकर विचरते हैं, तब गण्डधारी यमराज के समान जान पड़ते है। उस के साथ समरागंण में सेनासहित कलिंगराज ने किस प्रकार युद्ध किया?

संजय ने कहा- राजेन्द्र! आपके पुत्र का उपर्युक्त आदेश पाकर अपनी विशाल सेना से सुरक्षित हो महाबली कलिंगराज भीमसेन के रथ के पास गया। भारत! रथ, घोडे़, हाथी और पैदलों से भरी हुई कलिंगों की उस विशालवाहिनी को हाथों में बड़े-बड़े आयुध लिये आती देख चेदि देशीय सैनिकों के साथ भीमसेन ने उसे बाणों द्वारा पीड़ित करना आरम्भ किया। साथ ही युद्ध के लिये आते हुए निषादराज पुत्र केतुमान को भी चोट पहुँचायी। तब राजा केतुमान के साथ क्रोध में भरा हुआ श्रुतायु भी रणक्षेत्र में भीमसेन के सामने आया। उस समय चेदि देशीय सैनिकों की सेनाएं व्यूहबद्ध होकर खड़ी थी।

नरेश्वर! कलिंगों के कई सहस्र रथ और दस हजार हाथियों एवं निषादों के साथ केतुमान उस ऋणस्थल में भीमसेन को सब ओर से रोकने लगा। तब भीमसेन ने पदचिह्नों पर चलने वाले चेदि, मत्स्य तथा करूषदेश के क्षत्रियों ने समरभूमि में निषादों एवं उनके राजाओं पर आक्रमण किया। फिर तो दोनों दलों में अत्यन्त घोर और भयंकर युद्ध होने लगा। महाराज! उस समय एक-दूसरों को मार डालने की इच्छा रखकर सब योद्धा अपने और पराये की पहचान नहीं कर पाते थे। शत्रु के साथ भीमसेन का वह युद्ध सहसा उसी प्रकार अत्यंत भयंकर हो चला, जैसे विशाल दैत्य सेना के साथ देवराज इन्द्र का युद्ध हुआ करता था। भरतनन्दन! संग्रामभूमि में युद्ध करती हुई उस कलिंग सेना का महान् कोलाहल समुद्र की गर्जना के समान जान पड़ता था।

राजन्! उस समय सब योद्धाओं ने छिन्न-भिन्न होकर परस्पर एक दूसरे को खिंचते हुए वहाँ की सारी भूमि को अपनी रक्तरंजित लाशों से पाट दिया। वह भूमि खरगोश के रक्त की भाँति लाल दिखायी देने लगी। परम दुर्जय शूर सैनिक विपक्षी को मार डालने की अभिलाषा लेकर अपने और पराये को भी जान नहीं पाते थे। बहुधा अपने ही पक्ष के सैनिक अपने ही योद्धाओं को मारने के लिये पकड़ लेते थे। राजन्! इस प्रकार वहाँ बहुसंख्य कलिंगों और निषादों के साथ अल्पसंख्य चेदिदेशीय सैनिकों का बड़ा भयंकर युद्ध होने लगा। महाबली चेदि सैनिक यथाशक्ति पुरुषार्थ प्रकट करके भीमसेन को छोड़कर भाग चले।

चेदिदेशीय सैनिक के पलायन कर जाने पर समस्त कलिंग भीमसेन के निकट जा पहुँचे; तो भी महाबली पाण्डुनन्दन भीमसेन अपने बाहुबल का भरोसा करके पीछे नहीं हटे और न रथ की बैठक से तनिक भी विचलित हुए। वे कलिंगों की सेना पर अपने तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। महाधनुर्धर कलिंगराज और उसका महारथी पुत्र शुक्रदेव दोनों मिलकर पाण्डुनन्दन भीमसेन पर बाणों का प्रहार करने लगे। तब महाबाहु भीम ने अपने बाहुबल का आश्रय लेकर सुन्दर धनुष की टंकार फैलाते हुए कलिंगराज से युद्ध आरम्भ कर दिया। शुक्रदेव ने समरभूमि में बहुत से सायकों की वर्षा करते हुए उन सायकों द्वारा भीमसेन के घोड़ों को मार डाला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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