द्वितीय (2) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवा
विदुर जी बोले- राजन! आप धरती पर क्यों पड़े हैं? उठकर बैठ जाइये और बुद्धि के द्वारा अपने मन को स्थिर कीजिये। लोकेश्वर! समस्त प्राणियों की यही अन्तिम गति है। सारे संग्रहों का अन्त उनके क्षय में ही है। भौतिक उन्नतियों का अन्त पतन में ही है। सारे संयोगों का अन्त वियोग में ही है। इसी प्रकार सम्पूर्ण जीवन का अन्त मृत्यु में ही होने वाला है। भरतनन्दन! क्षत्रियशिरोमणे! जब शूरवीर और डरपोक दोनों को ही यमराज खींच ले जाते हैं, तब वे क्षत्रिय लोग युद्ध क्यों न करते! महाराज! जो युद्ध नहीं करता, वह भी मर जाता है और जो संग्राम में जूझता है, वह भी जीवित बच जाता है। काल को पाकर कोई भी उसका उल्लंघन नहीं कर सकता। जितने प्राणी हैं, वे जन्म से पहले यहाँ व्यक्त नहीं थे। वे बीच में व्यक्त होकर दिखायी देते हैं और अन्त में पुन: उनका अभाव (अव्यक्त रूप से अवस्थान) हो जाएगा। ऐसी अवस्था में उनके लिये रोने-धोने की क्या आवश्यकता है? शोक करने वाला मनुष्य न तो मरने वाले के साथ जा सकता है और न मर ही सकता है। जब लोक की ऐसी ही स्वाभाविक स्थिति है, तब आप किस लिये शोक कर रहे हैं? कुरुश्रेष्ठ! काल नाना प्रकार के समस्त प्राणियों को खींच लेता है। काल को न तो कोई प्रिय है और न उसके द्वेष का ही पात्र है। भरतश्रेष्ठ! जैसे हवा तिनकों को सब ओर उड़ाती और डालती रहती है, उसी प्रकार समस्त प्राणी काल के अधीन होकर आते-जाते हैं। जो एक साथ संसार की यात्रा में आये हैं, उन सबको एक दिन वहीं (परलोक में) जाना है। उनमें से जिसका काल पहले उपस्थित हो गया, वह आगे चला जाता है। ऐसी दशा में किसी के लिये शोक क्या करना है? राजन! युद्ध में मारे गये इन वीरों के लिये तो आपको शोक करना ही नहीं चाहिये। यदि आप शास्त्रों का प्रमाण मानते हैं तो वे निश्चय ही परम गति को प्राप्त हुए हैं। वे सभी वीर वेदों का स्वाध्याय करने वाले थे। सबने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया था तथा वे सभी युद्ध में शत्रु का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए हैं; अत: उनके लिये शोक करने की क्या बात है? ये अदृश्य जगत से आये थे और पुन: अदृश्य जगत में ही चले गये हैं। ये न तो आपके थे और न आप ही इनके हैं। फिर यहाँ शोक करने का क्या कारण है? युद्ध में जो मारा जाता है, वह स्वर्ग लोक प्राप्त कर लेता है और जो शत्रु को मारता है, उसे यश की प्राप्ति होती है। ये दोनो ही अवस्थाएँ हम लोगों के लिये बहुत लाभदायक हैं। युद्ध में निष्फलता तो है ही नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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