पञ्चाशत्तम (50) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
भीष्म जी कहते हैं- भरतनन्दन! च्यवन मुनि को ऐसी अवस्था में अपने नगर के निकट आया जान राजा नहुष अपने पुरोहित और मन्त्रियों को साथ ले शीघ्र वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने पवित्रभाव से हाथ जोड़कर मन को एकाग्र रखते हुए न्यायोचित रीति से महात्मा च्यवन को अपना परिचय दिया। प्रजानाथ! राजा के पुरोहित ने देवताओं के समान तेजस्वी सत्यव्रती महात्मा च्यवन मुनि का विधिपूर्वक पूजन किया। तत्पश्चात राजा नहुष बोले- द्विजश्रेष्ठ! बताइये, मैं आपका कौन-सा प्रिय कार्य करूँ? भगवन! आपकी आज्ञा से कितना ही कठिन कार्य क्यों न हो, मैं सब पूरा करूँगा। च्यवन ने कहा- राजन! मछलियों से जीविका चलाने वाले इन मल्लाहों ने बड़े परिश्रम से मुझे अपने जाल में फँसाकर निकाला है, अत: आप इन्हें इन मछलियों के साथ-साथ मेरा भी मूल्य चुका दीजिये। तब नहुष ने अपने पुरोहित से कहा- पुरोहित जी! भृगुनन्दन च्यवन जी जैसी आज्ञा दे रहे हैं, उसके अनुसार इन पूज्यपाद महर्षि के मूल्य के रूप में मल्लाहों को एक हज़ार अशर्फियाँ दे दीजिये। च्यवन ने कहा- नरेश्वर! मैं एक हज़ार मुद्राओं पर बेचने योग्य नहीं हूँ। क्या आप मेरा इतना ही मूल्य समझते हैं, मेरे योग्य मूल्य दीजिये और वह मूल्य कितना होना चाहिये, वह अपनी ही बुद्धि से विचार करके निश्चित कीजिये। नहुष बोले- व्रिपवर! इन निषादों को एक लाख मुद्रा दीजिये। यों पुरोहित को आज्ञा देकर वे मुनि से बोले- भगवन! क्या यह आपका उचित मूल्य हो सकता है या अभी आप कुछ और देना चाहते हैं? च्यवन ने कहा- नृपश्रेष्ठ! मुझे एक लाख रुपये के मूल्य में ही सीमित मत कीजिये। उचित मूल्य चुकाइये। इस विषय में अपने मन्त्रियों के साथ विचार कीजिये। नहुष ने कहा- पुरोहित जी! आप इन विषादों को एक करोड़ मुद्रा के रूप में दीजिये और यदि यह भी ठीक मूल्य न हो तो और अधिक दीजिये। च्यवन ने कहा- महातेजस्वी नरेश! मैं एक करोड़ या उससे भी अधक मुद्राओं में बेचने योग्य नहीं हूँ। जो मेरे लिये उचित हो वही मूल्य दीजिये और इस विषय में ब्राह्मणों के साथ विचार कीजिये। नहुष बोले- ब्रह्मन! यदि ऐसी बात है तो इन मल्लाहों को मेरा आधा या सारा राज्य दे दिया जाये। इसे ही मैं आपके लिए उचित मूल्य मानता हूँ। आप इसके अतिरिक्त और क्या चाहते हैं। च्यवन ने कहा- पृथ्वीनाथ! आपका आधा या सारा राज्य भी मेरा उचित मूल्य नहीं है। आप उचित मूल्य दीजिये और वह मूल्य आपके ध्यान में न आता हो तो ऋषियों के साथ विचार कीजिये। भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! महर्षि का यह वचन सुनकर राजा दु:ख से कातर हो उठे और मंत्री तथा पुरोहित के साथ इस विषय में विचार करने लगे। इतने ही में फल-मूल का भोजन करने वाले एक वनवासी मुनि, जिनका जन्म गाय के पेट से हुआ था, राजा नहुष के समीप आये और वे द्विजश्रेष्ठ उन्हें सम्बोधित करके कहने लगे- 'राजन! ये मुनि कैसे संतुष्ट होंगे, इस बात को मैं जानता हूँ। मैं इन्हें शीघ्र संतुष्ट कर दूँगा। मैंने कभी हँसी-परिहास में भी झूठ नहीं कहा है, फिर ऐसे समय मे असत्य कैसे बोल सकता हूँ? मैं आपसे जो कहूँ, वह आपको नि:शंक होकर करना चाहिये।' नहुष ने कहा- भगवन! आप मुझे भृगुपुत्र महर्षि च्यवन का मूल्य, जो इनके योग्य हो बता दीजिये और ऐसा करके मेरा, मेरे कुल का तथा समस्त राज्य का संकट से उद्धार कीजिये। वे भगवान च्यवन मुनि यदि कुपित हो जायें तो तीनों लोकों को जलाकर भस्म कर सकते हैं, फिर मुझ जैसे तपोबल शून्य केवल बाहुबल का भरोसा रखने वाले नरेश को नष्ट करना इनके लिये कौन बड़ी बात है? महर्षे! मैं अपने मन्त्री और पुरोहित के साथ संकट के अगाध महासागर में डूब रहा हूँ। आप नौका बनकर मुझे पार लगाइये। इनके योग्य मूल्य का निर्णय कर दीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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