महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 141 श्लोक 1-18

एकचत्वारिंशदधिकशतकम (141) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकचत्वारिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


सात्यकि का अद्भुत पराक्रम, श्रीकृष्ण का अर्जुन का सात्यकि के आगमन की सूचना देना और अर्जुन की चिन्ता


संजय कहते हैं- राजन! महाबाहु सात्यकि जल्दी करने योग्य कार्यों में बड़ी फुर्ती दिखाते थे। वे अर्जुन की विजय चाहते थे। उन्हें अनन्त सैन्य- सागर में प्रविष्ट होकर दुःशासन के रथ पर आक्रमण करने के लिये उद्यत देख सोने की ध्वजा धारण करने वाले त्रिगर्त देशीय महाधनुर्धर योद्धाओं ने सब ओर से घेर लिया। रथ समूह द्वारा सब ओर से सात्यकि को अवरुद्ध करके उन परम धनुर्धर योद्धाओं ने उन पर क्रोध पूर्वक बाण समूहों की वर्षा आरम्भ कर दी। परंतु उस महासमर में शोभा पाने वाले अपने शत्रु रूप उन पचास राजकुमारों को सत्य पराक्रमी सात्यकि ने अकेले ही परास्त कर दिया। कौरव सेना का वह मध्य भाग हथेलियों के चट-चट शब्द से गूँज उठा। खड्ग, शक्ति तथा गदा आदि अस्त्र शस्त्रों से व्याप्त था और नौका रहित अगाध जल के समान दुस्तर प्रतीत होता था। वहाँ पहुँचकर हम लोगों ने रभूमि में सात्यकि का अद्भुत चरित्र देखा। वे इतनी फुर्ती से इधर-उधर जाते थे कि मैं उन्हें पश्चिम दिशा में देखकर तुरंत ही पूर्व दिशा में भी उपस्थित देखता था, सैंकड़ों रथियों के समान वे शूरवीर सात्यकि उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम तथा कोणवर्ती दिशाओं में भी नाचते हुए से विचर रहे थे।

सिंह के समान पराक्रम सूचक गति से चलने वाले सात्यकि के उस चरित्र को देखकर त्रिगर्त देशीय योद्धा अपने स्वजनों के लिये शोक संताप करते हुए पीछे लौट गये। तदनन्तर युद्ध स्थल में दूसरे शूरसेन देशीय शूरवीर सैनिकों ने अपने शर समूहों द्वारा उन पर नियन्त्रण करते हुए उन्हें उसी प्रकार रोका, जैसे महावत मतवाले हाथी को अंकुशों द्वारा रोकते हैं। तब अचिन्त्य बल और पराक्रम से सम्पन्न महामना सात्यकि ने उनके साथ युद्ध करके दो ही घड़ी में उन्हें हरा दिया और फिर वे कलिंग देशीय सैनिकों के साथ युद्ध करने लगे। कलिंगों की उस दुर्जय सेना को लाँघकर महाबाहु सात्यकि कुन्ती कुमार अर्जुन के निकट जा पहुँचे। जैसे जल में तैरते-तैरते थका हुआ मनुष्य स्थल मेें पहुँच जाय, उसी प्रकार पुरुषसिंह अर्जुन को देखकर युयुधान को बड़ा आश्वासन मिला।

सात्यकि को आते देख भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- ‘पार्थ! देखो, वह तुम्हारे चरणों का अनुगामी शिनि पौत्र सात्यकि आ रहा है। ‘यह सत्यपराक्रमी वीर तुम्हारा शिष्य और सखा भी है। इस पुरुषसिंह ने समस्त योद्धाओं को तिनकों के समान समझकर परास्त कर दिया है। ‘किरीटधारी अर्जुन! जो तुम्हें प्राणों के समान अत्यन्त प्रिय है, वही यह सात्यकि कौरव योद्धाओं में घोर उपद्रव मचाकर आ रहा है। ‘फाल्गुन! यह सात्यकि अपने बाणों द्वारा द्रोणाचार्य तथा भोजवंशी कृतवर्मा का भी तिरस्कार करके तुम्हारे पास आ रहा है। ‘फाल्गुन! यह शूरवीर एवं उत्तम अस्त्रों का ज्ञाता सात्यकि धर्मराज के प्रिय तुम्हारे समाचार लेने के लिये बड़े-बड़े योद्धाओं को मारकर यहाँ आ रहा है। ‘पाण्डु नन्दन! महाबली सात्यकि कौरव सेना के भीतर अत्यन्त दुष्कर पराक्रम करके तुम्हें देखने की इच्छा से यहाँ आ रहा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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