महाभारत आदि पर्व अध्याय 39 श्लोक 1-14

एकोनचत्‍वारिंश (39) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: एकोनचत्‍वारिंश अध्‍याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
ब्रह्मा जी की आज्ञा से वासुकि का जरत्कारु मुनि के साथ अपनी बहिन को ब्याहने के लिये प्रयत्नशील होना

उग्रश्रवा जी कहते हैं- द्विजश्रेष्ठ! एलापत्र की बात सुनकर नागों का चित्त प्रसन्न हो गया। वे सब के सब एक साथ बोल उठे- ‘ठीक है, ठीक है।’ वासुकि को भी इस बात से बड़ी प्रसन्नता हुई। वे उसी दिन से अपनी बहिन जरत्कारु का बड़े चाव से पालन-पोषण करने लगे। तदनन्तर थोड़ा ही समय व्यतीत होने पर सम्पूर्ण देवताओं तथा असुरों ने समुद्र का मन्थन किया। उसमें बलवानों में श्रेष्ठ वासुकि नाग मन्दराचल रूप मथनी में लपेटने के लिये रस्सी बने हुए थे। समुद्र मन्थन का कार्य पूरा करके देवता वासुकि नाग के साथ पितामह ब्रह्माजी के पास गये और उनसे बोले- ‘भगवन! ये वासुकि माता के शाप से भयभीत हो बहुत संतप्त होते रहते हैं। देव! अपने भाई-बन्धुओं का हित चाहने वाले इन नागराज के हृदय में माता का शाप काँटा बनकर चुभा हुआ है और कसक पैदा करता है। आप इनके उस काँटे को निकाल दीजिये। ‘देवेश्वर! नागराज वासुकि हमारे हितैषी हैं और सदा हम लोगों के प्रिय कार्य मे लगे रहते हैं; अतः आप इन पर कृपा करें और इनके मन में जो चिन्ता की आग जल रही है, उसे बुझा दें।'

ब्रह्माजी ने कहा- देवताओं! एलापत्र नाग ने वासुकि के समक्ष पहले जो बात कही थी, वह मैंने ही मानसिक संकल्प द्वारा उसे दी थी (मेरी ही प्रेरणा से एलापत्र ने वे बातें वासुकि आदि नागों के सम्मुख कही थीं)। ये नागराज समय आने पर स्वयं तदनुसार ही कार्य करें। जनमेजय के यज्ञ में पापी सर्प ही नष्ट होंगे, किंतु जो धर्मात्मा हैं वे नहीं। अब जरत्कारु ब्रह्मण उत्पन्न होकर उस तपस्या में लगे हैं। अवसर देखकर ये वासुकि अपनी बहिन जरत्कारु को उन महर्षि की सेवा में समर्पित कर दें। देवताओं! एलापत्र नाग ने जो बात कही है, वही सर्पों के लिये हितकर है। वही बात होने वाली है। उससे विपरीत कुछ भी नहीं हो सकता। उग्रश्रवा जी कहते हैं- ब्रह्माजी की बात सुनकर शाप से मोहित हुए नागराज वासुकि ने सब सर्पों को यह संदेश दे दिया कि मुझे अपनी बहिन का विवाह जरत्कारु मुनि के साथ करना है। फिर उन्होंने जरत्कारु मुनि की खोज के लिये नित्य आशा में रहने वाले बहुत से सर्पों को नियुक्त कर दिया। और यह कहा- ‘सामर्थ्‍यशाली जरत्कारु मुनि जब पत्नी का वरण करना चाहें, उस समय शीघ्र आकर यह बात मुझे सूचित करनी चाहिये। उसी से हम लोगों का कल्याण होगा।'

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अंतर्गत आस्तीक पर्व में जरत्कारु मुनि का अन्वेषणविषयक उन्तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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