महाभारत विराट पर्व अध्याय 43 श्लोक 1-13

त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


बृहन्नला द्वारा उत्तर को पाण्डवों के आयुधों का परिचय कराना

बृहन्नला बोली - राजकुमार! तुमने पहले जिसके विषय में मुझसे प्रश्न किया है, वही यह अर्जुन का विश्व विख्यात गाण्डीव धनुष है, जो शत्रुओं की सेना के लिये काल रूप है। यह सब आयुधों में विशाल है। इसमें सब ओर सोना मढ़ा है। यही उत्तम आयुध गाण्डीव अर्जुन के पास रहा करता था। यह बकेला ही एक लाख धनुषों की बराबरी करने वाला तथा अपने राष्ट्र को बढ़ाने वाला है। पृथा पुत्र अर्जुन इसी के द्वारा युद्ध में मनुष्यों तथा देवताओं पर विजय पाते आ रहे हैं। हलके - गहरे अनेक प्रकार के रंगों से इसकी विचित्र शोभा होती है। यह चिकना, चमकदार औश्र विस्तृत है। इसमें कहीं कोई चोट का चिह्न नहीं आया है। देवताओं, दानवों मथा गन्धर्वों ने इसका बहुत वर्षों तक पूजन किया है। पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने इसे एक हजार वर्षों तक धारण किया था। तदनन्तर प्रजापति ने पाँच सौ तीन वर्षों तक रक्खा। इन्द्र के बाद सोन ने तथा राजा वरुण ने सौ वर्षों तक इसे धारण किया। तत्पश्चात् श्वेतवाहन अर्जुन पैंसठ वर्षों से इसे धारण करते चले आ रहे हैं। यह सर्वोत्तम धनुष देखने में बड़ा ही मनोहर है। इसके द्वारा महान् पराक्रम प्रकट होता है। अर्जुन को यह महादिव्य धनुष साक्षात् वरुण देव से प्राप्त हुआ था।

तथा दूसरा देवताओं और मनुष्यों में पूजित उत्कृष्ट रूप धारण करने वाला धनुष भीमसेन का है, जिसके दोनों किनारे बड़े सुन्दर हैं और मध्य भाग में सोना मढ़ा हुआ है। यह वही धनुष है, जिससे शत्रुओं को संताप देने वाले कुन्ती कुमार भीमसेन ने सम्पूर्ण प्राची दिशा पर पिजय पायी थी। उत्तर! जिसके ऊपर इन्द्रगोप ( बीर बहूटी ) नामक कीटों का चित्र है और जो देखने में मनोहर है, वही यह उत्तम धनुष राजा युधिष्ठिर का है। जिसमें सुवर्ण के बने हुए प्रकाश पूर्ण सूर्य प्रकाशित हो रहे हैं और जो तेज से जाज्वल्यमान जान पड़ते हैं, वही यह नकुल का आयुध है। जिसके ऊपर सुवर्ण जटित मीने के फतिंगे सुशोभित हैं, वही यह माद्री नन्दन सहदेव का धनुष है। विराट पुत्र! ये जो छुरे के समान मजबूत और चमकीले बाण हैं, जिनमें पंख लगे हुण् हैं और जो साँपों के विष के समान प्रभाव रखते हैं, ये सब अर्जुन के ही हैं। ये युद्ध में तेज से प्रकाशित होकर बड़ी तेजी से शत्रु पर आघात करते हैं। रण में शत्रुओं पर बाण वर्षा करने वाले वीर के लिये इन बाणों का काटना असम्भव है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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