महाभारत वन पर्व अध्याय 55 श्लोक 1-17

पंचपंचाशत्तम (55) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


नल का दूत बनकर राजमहल में जाना और दमयन्ती को देवताओं का संदेश सुनाना

बृहदश्व मुनि कहते हैं- भारत! देवताओं से उनकी सहायता करने की प्रतिज्ञा करके राजा नल ने हाथ जोड़ पास जाकर उनसे पूछा- ‘आप लोग कौन हैं? और वह कौन व्यक्ति है, जिसके पास जाने के लिये आपने मुझे दूत बनाने की इच्छा की है तथा आप लोगों का वह कौन-सा कार्य है, जो मेरे द्वारा सम्पन्न होने योग्य है, यह ठीक-ठीक बताइये’।

निषधराज नल के इस प्रकार पूछने पर इन्द्र ने कहा- ‘भूपाल! तुम हमें देवता समझो, हम दमयन्ती को प्राप्त करने के लिये यहाँ आये हैं। मैं इन्द्र हूं, ये अग्निदेव हैं, ये जल के स्वामी वरुण और ये प्राणियों के शरीरों का नाश करने वाले साक्षात् यमराज हैं। आप दमयन्ती के पास जाकर उसे हमारे आगमन की सूचना दे दीजिये और कहिये-महेन्द्र आदि लोकपाल तुम्हें देखने के लिये आ रहे हैं। इन्द्र, अग्नि, वरुण और यम-ये देवता तुम्हें प्राप्त करना चाहते हैं। तुम उनमें से किसी एक देवता को पति के रूप में चुन लो’।

इन्द्र के ऐसा कहने पर नल हाथ जोड़कर बोले- ‘देवताओ! मेरा भी एकमात्र यही प्रयोजन है, जो आप लोगों का है; अतः एक ही प्रयोजन के लिये आये हुए मुझे दूत बनाकर न भेजिये। देवेश्वरों! जिसके मन में किसी स्त्री को प्राप्त करने का संकल्प हो गया है, वह पुरुष उसी स्त्री को दूसरे के लिये कैसे छोड़ सकता है? अतः आप लोग ऐसी बात कहने के लिये मुझे क्षमा करे’।

देवताओं ने कहा- 'निषध नरेश! तुम पहले हम लोगों से हमारा कार्य सिद्ध करने के लिये प्रतिज्ञा कर चुके हो, फिर तुम उस प्रतिज्ञा का पालन कैसे नहीं करोगे? इसलिये निषधराज! तुम शीघ्र जाओ; देर न करो।'

बृहदश्व मुनि कहते हैं- राजन्! उन देवताओं के ऐसा कहने पर निषध नरेश ने पुनः उनसे पूछा- 'विदर्भराज के सभी भवन (पहरेदारों से) सुरक्षित हैं। मैं उनमें कैसे प्रवेश कर सकता हूँ।' तब इन्द्र ने पुनः उत्तर दिया- ‘तुम वहाँ प्रवेश कर सकोगे।’ तत्पश्चात् राजा नल ‘तथास्तु’ कहकर दमयन्ती के महल में गये। वहाँ उन्होंने देखा, सखियों से घिरी हुई परम सुन्दरी विदर्भ राजकुमारी दमयन्ती अपने सुन्दर शरीर और दिव्य कांति से अत्यन्त उद्भासित हो रही है। उसके अंग परम सुकुमार हैं, कटि के ऊपर का भाग अत्यन्त पतला है और नेत्र बड़े सुन्दर हैं एवं वह अपने तेज से चन्द्रमा की प्रभा को भी तिरस्कृत कर रही है। उस मनोहर मुसकान वाली राजकुमारी को देखते ही नल के हृदय में कामाग्नि प्रज्वलित हो उठी; तथापि अपनी प्रतिज्ञा को सत्य करने की इच्छा से उन्होंने उस कामदेवना को मन में ही रोक लिया। निषधराज को वहाँ आये देख अन्तःपुर की सारी सुन्दरी स्त्रियां चकित हो गयीं और उनके तेज से तिरस्कृत हो अपने आसनों से उठकर खड़ी हो गयीं। अत्यन्त प्रसन्न और आश्चर्यचकित होकर उन सब ने राजा नल के सौन्दर्य की प्रशंसा की। उन्होंने उन से वार्तालाप नहीं किया; परन्तु मन-ही-मन उनका बड़ा आदर किया। वे सोचने लगीं- ‘अहो! इनका रूप अद्भुत है, कांति बड़ी मनोहर है तथा इन महात्मा का धैर्य भी अनुठा है। न जाने ये हैं कौन? सम्भव है देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व हों?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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